• Home
  • About Us
  • Contact Us
  • FAQ
  • Login
  • Register

Your Story Club

Short Story Publisher

    • Read
    • Publish
    • Editorial
    • Story Archive
    • Discussion
    • Testimonials
    You are reading story at: yourstoryclub » Most Popular Short Stories » Short Stories for Kids » Magic Carpet – 2

    Magic Carpet – 2

    Hindi Short Story published on July 5, 2013 by Durga Prasad

    Excerpt: Prince Devasheesh was sent to Gurukul for education. At 16 he came back,he learnt all about war and politics He killed the giant , married princess happily

    Magic flying carpet

    Hindi Story – Magic Carpet – 2
    Photo credit: clarita from morguefile.com

    आपने जादुई चटाई की करामत देख चूका है कि किस तरह सुंदरगढ़ की महरानी ने प्रत्येक शनिवार को नियमितरुप से पीपल के पेड़ की जड़ में जल डालकर देवदूत को प्रसन्न कर लिया और उसे एक सुन्दर सा पुत्र रत्न प्राप्त हुआ . राजमहल में तो खुशी का माहौल हो गया . राज्य भर में लोगों ने भी तरह – तरह ढंग से खुशियों का इजहार किया . राजा ने भी अपनी प्रजा के लिए राज्य के कोष को दो दिनों के लिए खोल दिया और जरुरतमंदों को तहेदिल से मदद की. जिन – जिन घरों में बच्चों की किलकारियां गूंज रहीं थीं , उन घरों को खिलौनों से भर दिए गये . राजा एवं रानी इस विचार के पोषक थे कि राजमहल के अतिरिक्त राज्य के घर – घर में खुशियाँ मनाई जाय , जहाँ बच्चों की किलकारियां गूंजती हो. राजा उग्रसेन और रानी कलावती का मत था की राजा का अस्तित्व प्रजा की हंसी – खुशी पर ही अवलंबित है. राजा का परम कर्तव्य हो जाता है कि वह प्रजा के दुःख – सुख का ख्याल रखे और उनके सभी कार्यक्रमों में वक़्त निकाल कर शरीक हों .
    इधर दूज के चाँद की तरह राजकुमार देवाशीष बढ़ने लगा . राजा एवं रानी दोनों ने तय कर लिया कि देवाशीष की शिक्षा – दीक्षा गुरुकुल में ही हो जहां राज्य के होनहार बालक पढ़ते – लिखते हैं . उच्च चरित्र का निर्माण हो , अश्त्र – शस्त्र विद्या में निपुण हो , जीवन मूल्यों एवं आदर्शों का अर्थ समझ सके और अपने जीवन में उतार सके . माया – ममता का त्याग करके राजा ने देवाशीष को पांच वर्ष की उम्र में बसंत पंचमी के दिन गुरुकुल में भरती करवा दिया और आचार्य को हिदायत कर दी कि राजकुमार के साथ अन्य विद्यार्थियों की तरह ही व्यवहार किया जाय , उसे जरा सा भी अनुभव नहीं होना चाहिए कि वह सुंदरगढ़ का राजकुमार है. भूल करने पर उसे भी दण्डित करने में किसी प्रकार का संकोंच न किया जाय. राजा की बातों को आचार्य ने गाँठ में बाँध लिया और आश्वस्त किया : ऐसा ही होगा . अभी से ही तराशकर इसे एक कुशल , सबल , सक्षम और न्यायप्रिय व्यक्ति बनाने में कोई कमी नहीं की जायेगी .
    राजा और रानी हृदय पर पत्थर रखकर राजमहल लोट आये. बच्चा तो बच्चा ही होता है . आते समय देवाशीष ने माँ की साडी का कोर पकड़ा तो छोडने को तैयार ही नहीं हुआ. उस बालक के मन में तरह – तरह की आशंकाये उठ रहीं थीं. उसके नैनसरोज अश्रुबूँद से नम हो गईं – लगा कि अब रो पड़ेगा कि तब . माँ ने कपोलों को सहलाकर अतिसय प्यार व दुलार से बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया – पुचकारा और सेविका को सौंप दिया . बच्चे को इस उम्र में गुरुकुल जाने की आदत डालनी आवश्यक थी. यह भी सेविका को आदेश दे दिया गया कि जब बच्चा तिलमिला जाय या रोने लगे तो उसे जल्द राजमहल पहुंचा दिया जाय. जिनके भी छोटे – छोटे शिशु हैं , उनको एहसास होता होगा कि इतने कच्चे उम्र में पाठशाला भेजना कितना दुरूह कार्य होता है. कलेजे पर माँ – बाप को पत्थर रख लेना पड़ता है.
    समय के पंख होते हैं . दिन जाते देर नहीं लगते. राजकुमार देवाशीष दस वर्षों में युद्ध कौशल में निपुण हो गया. धनुर्विद्या , तलवारबाजी , घुडसवारी आदि में कुशलता हासिल कर ली. सारे वेद – पुराण , उपनिषद एवं शास्त्रों का अध्यय न करके राजकाज चलाने के गुर सीख लिए . सोलह साल की उम्र में ही नीति एवं राजनीति के नियमों व धर्मों के बारे ज्ञान देने के पश्चात् आचार्य महोदय ने राजकुमार देवाशीष को एक विशेष समारोह की शुभ घड़ी में राजा को सौंप दिया.
    राजा एवं रानी दोनों अपने बेटे को अपने पास पाकर अति प्रसन्न थे. सोलह साल का उम्र और राजमहल में सभी सुख – सुविधाएं मौजूद . ऐसे में मन का विचलित होना स्वाभाविक था. राजा उग्रसेन ने महामंत्री से इस सम्बन्ध में सलाह मशविरा किया तो निष्कर्ष निकला कि राजकुमार का किसी सुशील राजकुमारी से विवाह कर दिया जाय और राजकाज का दायित्य सौंप दिया जाय.
    रानी इस निर्णय से बिलकुल सहमत नहीं थी. उनका कहना था कि तीन साल के बाद ही शादी विवाह के बारे में कोई निर्णय लिया जाय, अभी तो राजकुमार का खेलने – कूदने की उम्र है. चूँकि रानी की दलील में दम था , इसलिए प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया . एक बात पर सभी सहमत हो गये कि मन – मिजाज चुस्त – दुरुस्त रहने के लिए राजकुमार को शिकार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाय . चुकंदर , जो महामंत्री का मुंहलग्गू था , फट से फूट पड़ा , ‘ मुझे शिकार में बहुत मजा आता है , मैं राजकुमार के साथ शिकार में जाऊंगा. कोई दिक्कत नहीं होगी . मेरे पिता जी , पूछिये , राजा साहब के साथ शिकार में जाया करते थे जब वे …और मेरे दादा जी …
    अरे ! चुपकर . तेरे दादा जी क्या करते थे सब को मालुम है – महामंत्री ने कहा
    एक शिकारी दल का गठन अविलम्ब कर दिया गया उसमे चुकंदर को भी शामिल किया गया .
    राजकुमार देवाशीष ने जब शिकार करने की योजना के बारे सुना तो वह खुशी से झूम उठा. अगले दिन से ही तैयारी में लोग जूट गये . माल – असबाब , घोड़े , अश्त्र – शस्त्र भोजनादि सब का प्रबंध कर लिया गया . चुकंदर फुले नहीं समा रहा था क्योंकि शिकार में उसे काम – धाम नहीं करना पड़ता था ,हंसी – ठठ्ठे में ही दिन गुजर जाता था . ऊपर से खाने – पीने की चीजें उम्दा किस्म की मिलती थी. हरिन या खरगोश मिल गये तो बात ही क्या ? राजकुमार के साथ बैठकर खाने का अवसर मिल जाता था. तब वह अपने को खुशकिस्मत समझता था .
    शिकारगाह राज्य की उत्तरी सीमा में अवस्थित था. घना जंगल . दिन को भी कहीं – कहीं घुप्प अँधेरा . जंगल में हिंसक जानवर जैसे शेर , बाघ , चीते , भालू भी थे. शिकार बड़ी ही सावधानी से करनी पड़ती थी. छोटी सी चूक जानलेवा हो सकती थी. दो – तीन बार तडके ही लोग शिकार के लिए निकल जाते थे ,सीमा के उस पार प्रतापगढ़ की सीमा प्रारंभ होती थी. एक दिन हिरन के पीछे घोडा दौडाते हुए राजकुमार देवाशीष प्रतापगढ़ की सीमा में प्रवेश कर गया. उसने हिरन पर निशाना साधा और बाण छोड़ दिया . निशाना सही था . हिरन वहीं ढेर हो गया . उसी वक़्त प्रतापगढ़ की राजकुमारी , जो पुरुष वेश में थी , पहुँच गयी. हिरन को उठाकर रख ली. राजकुमार देवाशीष ने जब विरोध किया तो उसे बंदी बना लिया गया और कैदखाने में डाल दिया गया . यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि राजकुमार देवाशीष कुछ भी समझ नहीं सका .
    राजभवन में यह बात दावानल की तरह फ़ैल गयी कि राजकुमारी ने शिकार के दौरान एक राजकुमार को पकड़कर कैदखाने में डाल दिया है जो उसके राज्य की सीमा में बिना अनुमति का घुस आया था.
    राजा भद्रसेन के कानों में जब यह समाचार पहुंचा तो वे अपने गुमास्ते को पता लगाने के लिए भेज दिया . गुमास्ता पूरे विवरण के साथ शीघ्र लौट आया . राजा ने जब सुना कि बंदी सुंदरगढ़ का राजकुमार है तो उसके रोयें खड़े हो गये. महामंत्री को बुलाकर सारी बातें बतलाई और कहा :
    अनर्थ हो गया . बिना सोचे समझे राजकुमारी ने सुंदरगढ़ के राजकुमार को शिकार के दौरान बंदी करकर ले आयी है . शीघ्र दूत भेजा जाय और राजा को सूचित कर दिया जाय कि राजकुमार सुरक्षित हैं . बाईज्जत दो दिनों में पहुंचा दिया जाएगा . ओर इधर राजकुमार से मिलने खुद राजा भद्रसेन कैदखाने में गये. राजकुमारी की भूल के लिए दुःख प्रकट किये और बाईज्जत अतिथिगृह में लेते आये .
    राजकुमार को जब पता चला कि जिसने उसे बंदी बनाया था वह युवक नहीं युवती है तो उसे यकीन नहीं हुआ. पता लगाने पर सारी बातें परत दर परत खुलती चली गईं . राजा के भाग्य में एक ही संतान लिखी हुयी थी. राजा ने सोचा था कि लड़का होगा , लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था , लडकी पैदा हुयी . राजा ने अपनी लडकी को राजकुमार की तरह बचपन से ही पालन – पोषण किया. राज्य के सभी लोग इस बात से अवगत थे , लेकिन दूसरे राज्य के लोंगों को बिलकुल पता नहीं था. राजकुमारी सर्वदा युवक के पोशाक में रहती थी. किसी को आपत्ति करने का साहस नहीं था. हंसी – मजाक करनेवाले को सौ कोड़े बरसाए जाते थे. छेड़ – छाड करनेवालों का सर कलम कर दिया जाता था. राजकुमार देवाशीष को जरा सा भी शक नहीं हुआ था जिसने उसे बंदी बनाया है वह युवक नहीं युवती है , क्योंकि उसने सर एवं सीने पर कवच पहन रखा था और बातचीत भी इशारे से ही करती थी . जब सारी बातों की जानकारी हो गयी तो राजकुमार को राजकुमारी से मिलने की इक्षा बलवती हो गयी . उधर राजकुमारी रात भर सो नहीं सकी , क्योंकि वह एक ही नज़र में दिल दे बैठी थी अर्थात उसे मोहब्बत हो गयी थी . वह भी राजकुमार से मिलने के लिए व्याकुल थी. शाम का वक़्त था . राजकुमार बगीचे में टहल रहा था कि उसी वक़्त राजकुमारी पुरुष के परिधान में आ धमकी और सीधी उबल पडी :
    आप इधर क्या कर रहे हैं ? आप को अपने कक्ष में होना चाहिए .
    इधर क्या कर रहा हूँ , आप को बताने की जरूरत मैं नहीं समझता . रही बात रहने की तो मैं कहाँ रहूँ या न रहूँ , आप से क्या मतलब ? आप को जो करना था सो कर दिया . जाईये यहाँ से और जश्न मनाईये . मैंने तो आपके राज्य की सीमा ही पार किया था , और कोई गुनाह किया था जो आपने मुझे बंदी बना लिया . इसकी कीमत आप को चुकानी होगी.
    मुझसे गलती हो गयी , क्या आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे ?
    नहीं . आपको सजा मिलनी ही चाहिए . आप के पिता जी आप का बेसब्री से इन्तजार कर रहें हैं . मेरे राज्य के महामंत्री सेना के साथ कूच कर गये है .
    अब क्या होगा , इस पर सोचिये .
    राजकुमारी ने सपने भी नहीं सोचा था कि एक छोटी सी भूल की इतनी बड़े कीमत देनी होगी. राजकुमारी सोच में डूबी हुयी थी उसी वक़्त गुमास्ते ने आकर कहा : आपके पिता श्री ने आपको शीघ्र बुलाया है . साथ में ही चलिए. राजकुमारी अबिलम्ब राजभवन में पिता के सन्मुख आ कर खड़ी हो गयी .
    राजा भद्रसेन ने बेटी से कहा : अब राजकुमार को ससम्मान हमें क्षमा के साथ लौटाना है . इसी में हमारी भलाई है अन्यथा हमें युद्ध का सामना करना पड़ेगा और हम किसी भी कीमत पर राजा उग्रसेन की सेनाओं से जीत नहीं सकते .
    पिता जी मुझसे भूल हो गयी . आवेश में आकर मैंने राजकुमार को बंदी बना लिया . मुझे मुआफ कर दीजिये.
    मुआफ तो कर दिया . लेकिन हम युद्ध को कैसे रोक सकते , यही बड़ी समस्या है अभी.
    पिता जी ! आप यदि राजकुमार से क्षमा मांग लेंगे तो बात बन सकती है .
    ठीक है , मैं जा रहा हूँ .राजा को देखते ही राजकुमार का हृदय मोम की तरह पिघल गया .उसने बढ़कर राजा का स्वागत किया और बोला : आपने आने का कष्ट क्यों किया , मुझे बुला लिए होते .राजकुमारी की भूल के लिए मैं …आप मुझे शर्मिंदा न करें . मैंने खबर भेज दी है कि कल मैं वापिस आ रहा हूँ.
    सेना लौट गयी है. हम मित्र हैं और मित्र ही रहेंगे. इन छोटी – छोटी बातों के लिए आपस में लड़ना क्या बुधिमानी की बात होगी ? कल पौ फटते ही मेरे लौटने की व्यवस्था कर दीजिये.
    अच्छा , बेटा ! राजा प्रसन्न मुद्रा में चल दिया और विदाई की तैयारी में जूट गये . आधीरात तक राजकुमार देवाशीष जागता रहा . उसने राजकुमारी को कसके फटकार लगाई थी, उसे अफ़सोस हो रहा था. उधर राजकुमारी का भी बुरा हाल था. उसकी पलकों से नींद उड़ चुकी थी . उसे रहरहकर राजकुमार की याद सता रही थी. एक तरह से दोनों में इश्क हो गया था . आग दोनों तरफ बराबर लगी हुयी थी. शुबह होते ही नज़र बचाकर राजकुमारी बगीचे में चली आयी उसे यकीन था कि इस वक़्त राजकुमार बगीचे में टहलता होगा . राजकुमार सामने ही मिल गया . फिर क्या था सारे शिकवा- गिला भुलाकर दोनों बैठकर अपने दिलों के तार झंकृत करने में निमग्न हो गये. दस बजे प्रस्थान करने का वक़्त निर्धारित था. फिर मिलने का वादा करके राजकुमारी चल दी. ठीक दस बजे बग्घी आकर लग गयी. सैनिकों की देख – रेख में राजा ने राजकुमार देवाशीष को ससमान्न विदा किया .राजकुमार का दिल किसी काम में नहीं लगने लगा तो राजा और रानी को चिंता सताने लगी. वजह क्या थी , पता लगाने पर सबकुछ मालुम हो गया. राजा ने रानी से कहा कि देवाशीष का विवाह प्रतापगढ़ की राजकुमारी से कर देना चाहिये. फिर क्या था , बातचीत चली और विवाह का तिथि और दिन समय सब निश्चित हो गया. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. मध्यरात्री में सात समंदर के राक्षसों ने प्रतापगढ़ राज्य पर धावा बोल दिया , राजा और राजकुमारी को बंदी बनाकर अपने साथ ले गये. यह खबर राजा उग्रसेन को पौ फटते ही मिल गयी. इस संकट की घड़ी में कैसे मदद की जाय एक बड़ी समस्या बन गयी. देवाशीष का भी चेहरा लटक गया. खाने – पीने से भी मन उचट गया. राजा – रानी भी बेचैन हो गये. रानी को देवदूत का ख्याल आया .उसने रात को उन्हें आह्वान किया तथा इस संकट से उबरने का आग्रह किया . रात को सपने में देवदूत आया और बताया कि राजकुमार को चटाई में बैठकर सात समंदर पार राक्षस के राज्य में भेज दिया जाय. महल के सामने ही एक तोता पिंजड़े में टेंगा रहता है. राक्षस के प्राण उसी में बसते हैं . किसी तरह तोते को मार देने से राक्षस मर जाएगा. राजा और राजकुमारी वहीं के कैदखाने में बंद है उन्हें छुड़ाकर , चटाई में बैठकर अतिशीघ्र लौटा जाय. तोते के जिस अंग को तोड़ा जाएगा , राक्षस का वही अंग टूटेगा – इस बात को ध्यान में रख लिया जाय. आपका पुत्र सबल है और सक्षम है . उसे ही भेजा जाय . ज्यादा आदमी भेजने से राक्षस को पता चल जाएगा – मानुष – गंध से . तब वह सतर्क हो जाएगा और फिर उसे मारना कठीन हो जाएगा. इतना कहकर देवदूत अंतर्ध्यान हो गया . पौ फटते ही रानी ने सारी बातें अपने पति को बतलाई . मध्यरात्री को जाने का सारा इंतजाम कर दिया गया . रानी ने राजकुमार को जादुई चटाई के बारे में सारी बातें बतला दीं , यह भी बतला दीं कि सात समंदर पार करके आठवां समंदर आता है – वहीं बीच में एक विशाल टापू है जहां राक्षसों का राजा रहता है. त्रेता और द्वापर युग में जो दैत्य जीवित बच गये , वे ही इस टापू में निवास करते हैं . मानव जाति उनके शत्रु हैं – ऐसी उनकी धारना है. इसलिए जब – तब मानव पर धावा बोल देते हैं . मध्यरात्री को राजकुमार अश्त्र – शस्त्र से सुसज्जित होकर जादुई चटाई में बैठकर टापू के लिए रवाना हो गया. महल के पास उतर गया . महल में प्रवेश करना लोहे के चने चबाना जैसे था. दो राक्षस पहरा दे रहे थे. दोनों से भिड़ना जान गवाना था. यहाँ विवेक से काम लेना था. जैसे ही एक दानव हटा , राजकुमार ने दूसरे पर तलवार से प्रहार कर दिया . वह वहीं ख़त्म हो गया . आगे बढ़ा तो बारामदे में तोता पिंजड़े में टंगा हुआ दिखाई दिया . समझने में देर नहीं लगी कि पास ही कहीं राक्षस का शयन कक्ष होगा. उसने खिडकी से कमरे में झाँका तो राक्षस मानुस गंध मानुस गंध कहते हुए उठ बैठा और बरामदे की ओर दौड़ पड़ा . शायद उसने राजकुमार को देख लिया था. तबतक राजकुमार पिंजड़े के पास पहुँच गया था . उसने झट तोते को निकाला और उसके दोनों पैरों को मचोड कर तोड़ दिए . राक्षस सामने ही गिर पड़ा क्योंकि उसके दोनों पैर टूट चुके थे . वह जोर – जोर से चीत्कार करने लगा . राजकुमार ने तोते की गर्दन मरोड़कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी. उधर तोता के मरते ही राक्षस भी मर गया . बगल के ही प्रकोष्ठ में राजा और राजकुमारी को कैद करके रखा गया था . उन्हें शीघ्र मुक्त कर दिया और अपने साथ चटाई के पास लेते आया . तबतक कई राक्षस वहाँ पहुँच गये . राजा को मरा देख स्तब्ध रह गये कि यह सब एकाएक कैसे हो गया . दुश्मन के पीछे दौड़ पड़े , लेकिन राजकुमार राजा और राजकुमारी को लेकर चटाई पर बैठ चुके थे . आदेश पाते ही जादुई चटाई हवा से बातें करने लगी. पौ फटने से पहले ही राजकुमार राजा और राजकुमारी के साथ अपने महल की छत पर उतर गये. राजा और रानी को सुरक्षित लौटने की खबर पहुंचा दी गयी. प्रतापगढ़ के राजा और राजकुमारी के लौटने की खबर महामंत्री को भेज दी गयी. राजा के सम्मान में प्रीती भोज का प्रबंध किया गया . सुंदरगढ़ के राजा ने अपने पुत्र देवाशीष के विवाह का प्रस्ताव उनकी पुत्री से रखा तो वे धन्य हो गये . अबिलम्ब विवाह का मुहूर्त निकाला गया. शुबह होते ही विदाई की व्यवस्था कर दी गयी. रानी ने राजकुमारी को हीरे का हार अपने कर कमलों से पहना कर खुशी का इजहार किया .गाजे – बाजे और राजसी ठाठ – वाट से बारात निकली और बड़े ही धूम – धाम से विवाह सम्पन्न हो गया. दान – दहेज़ में हीरे – जवाहरात के अलावे हाथी – घोड़े भी दिए गये. सभी बारातियों की देख – रेख और सम्मान में कोई कमी नहीं रही . हर बाराती को उपहार में पांच – पांच स्वर्ण मुद्राएँ दी गईं . तीन दिनों तक बारातियों को रोककर रखा गया . मनोरंजन के लिए नाच – गान का प्रबंध किया गया. जलपान एवं भोजन के लिए तरह तरह के व्यंजन परोसे गये – पेय पदार्थों में विशुद्ध जल के अतिरिक्त सुधा का भी प्रबंध किया गया . चौथे दिन बाराती हँसते गाते लौट गये. विशिष्ट अतिथ्थियों की विदाई एक दिन बाद की गयी. विशिष्ट अतिथियों को जमीन का एक – एक पट्टा दिया गया ताकि वे दिल चाहे तो उनके राज्य में बेरोकटोक निवास कर सके. राजकुमार एवं राजकुमारी को स्वर्ण जड़ित रथ में विदा किये. पूरे राज्य में सात दिनों तक उत्सव मनाया गया. राजकुमार एवं राजकुमारी के लिए शयन – कक्ष विशेषरूप से सजाया गया. राजा के राज्य के अंतर्गत गंधर्व पर्वत पर एक आरामगाह बनाया गया था जहां राजा और रानी ग्रीष्म ऋतू में आराम करने जाते थे. दुर्गम स्थान था . पहाड़ चढ़ने में ही दो – तीन लग जाते थे. लेकिन आज राजकुमार के पास जादुई चटाई थी. फिर चिंता की क्या बात थी ? राजकुमार अपने माता –पिता से आज्ञा लेकर सप्ताहांत में सपत्निक जादुई चटाई में बैठकर सोहागरात मनाने के लिए गन्धर्व पर्वत के लिए रवाना हो गये. इधर राजा और रानी में सहमति हो गयी कि राजकुमार के लौटते ही राज – काज का भार सौंपकर वे काशी वास कर जायेंगे और जीवन के अंतिम घड़ी तक वहीं रहेंगे.
    लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिन्दपुर , धनबाद , दिनांक : शुक्रवार , जून २०१३
    *************************************************************

    Read more Hindi Short Story by Durga Prasad in category Childhood and Kids with tag hindi | Hindi Story | hunt | king | prince | princess | Teacher

    About the Author

    Durga Prasad

    Leave a Reply Cancel reply

    Facebook Google+ Yahoo WordPress.com

    Enter your WordPress.com blog URL


    http://.wordpress.com

    Proceed

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Write Short Story for Money

    Our writer Yedu714 has won INR 4512. Read write short stories for money
    Note: This scheme is called off e.f. 27-Aug-2017.

    Tip of the Day

    Literary superiority makes a short story famous but it must also reach the intended readers. Read easily doable tips for short story authors to increase their online reader base. [ Read all tips]

    Buy Our Book

    yours-lovingly-love-short-story-bookYourStoryClub.com presents Yours Lovingly, an exquisite collection of short love stories penned by different writers. Buy on Flipkart | Amazon

    YSC Newsletter

    Get notified of featured stories and important updates. [Know more]

    Connect with us

    • Email
    • Facebook
    • Google+
    • LinkedIn
    • RSS
    • StumbleUpon
    • Tumblr
    • Twitter
    • YouTube

    Author’s Area

    • Dashboard
    • Profile
    • Posts
    • Comments

    How To

    • Write short story
    • Change name
    • Change password
    • Add profile image

    Story Contests

    • Love Letter Contest
    • Creative Writing
    • Story from Picture
    • Love Story Contest

    Featured

    • Story of the Month
    • Editor’s Choice
    • Selected Stories
    • Kids Bedtime Stories

    Hindi

    • Stories
    • Poems
    • Articles
    • Write in Hindi

    YSC Newsletter

    Moral | Love | Romance | Children | Funny | Suspense | Friendship | School and Colleage | Sci-Fi | Inspirational | Family | Poetry | Travel Experience

    Home | About Us | FAQ | Contact Us | Terms of Service | Privacy Policy

    Copyright © 2019 · YourStoryClub.com · - Online Short Story Publisher