समय और ज्वारभाटा किसी का इन्तजार नहीं करता |
कब पाँच बज गया पता ही न चला | दरवान भी आ गया बुलाने कि मैडम टी पर बुला रही है बैठक में | आप बढिए , मैं दस मिनट में तैयार होकर आ रहा हूँ | दरवान चला गया तो मैंने नंदू को सूचित कर दिया कि सात बजे शाम को मिलते हैं फिर आगे की रणनीति तैयार करते हैं |
मैं भी जा रहा हूँ बाहर में कुछ चाय – पानी पी लेता हूँ |
ठीक इसी जगह मिलते हैं |
ठीक है |
नंदू के चले जाने के बाद मैं सीधे बैठक खाने में प्रवेश किया | मैडम किसी से फोन पर बात कर रही थी , इशारे से मुझे बैठने के लिए कहा | मैं सोफे पर बैठ गया इत्मीनान से और टेलीग्राफ उठाकर समाचार पढ़ने में निमग्न हो गया |
मैडम अपने स्थान से उठकर मेरे समीप आकर बैठ गई |
कोई परशानी ?
नहीं |
आज संडे है | इसलिए फुर्सत में हूँ | आजकल नौकर – चाकर भी नियम – कानून जान गया है | उन्हें भी साप्ताहिक अवकास चाहिए | चौकीदार का शिफ्ट डियूटी है | तीन चौकीदार हैं – छः से दो , दो से दस फिर दस से छः | इनका भी अपना यूनियन है | थोड़ा सा भी उंच – नीच होने से जान सांसत में डाल देते हैं | मेट्रो सिटी है न ! गली – गल्ले में … समझ ही रहे हैं | बाघ के मुँह में रहना पड़ता है | कोई उपाय भी तो नहीं है | गाँव की भी हालत संतोषजनक नहीं है | खेती – गृहस्ती में आज के युवावर्ग का मन नहीं लगता | धान रोपकर तीन – तीन महीना तक इन्तजार करना नहीं चाहता | चाहता है सरकारी चाकरी हो , हर महीना वेतन – मजदूरी , वो भी आराम से मिलता रहे |
क्या कीजियेगा , वक्त के साथ आदमी को ढालना पड़ता है अपने आपको |
सो तो है |
घोसाल बाबू अंदर आया और पूछा , “ कुछ चाय – नाश्ता ? ”
हाँ , मित्र से पूछिये क्या खाना पसंद करेंगे इस वक्त ?
हल्का – फुल्का जो भी हो |
दो प्लेट सादा बड़ा ले आईये और एक पोट टी |
यहाँ सभी सुविधा उपलब्ध है | जो चाहिए मन मुवाफिक मिल जाता है | दूकानदार भी जानता है कि उसके ग्राहक को कब क्या चाहिए |
इसी को प्रबंधन कहते है | प्रबंधन अर्थात मैनेजमेंट | एक सफल व्यापार के लिए कुशाग्र बुद्धि की आवश्यकता होती है |
आपने ठीक कहा इसके बिना व्यापारी कभी सफल नहीं हो सकता अपने व्यापार में | दुसरी बात व्यापार छोटा हो या बड़ा बुद्धि उतनी ही खपानी पड़ती है |
जैसे चावल पकाइये हांडी भर या एक दाना उतना ही वक्त लगता है पकाने में |
एक्जेक्टली !
मैं तो दो घंटे तक खूब सोई | असल में सप्ताह में एक दिन ही मिलता है जब चितामुक्त होकर जी लें वरना बाकी दिन तो चीं – चीं – पों लगा ही रहता है |
मेरे साथ वो बात नहीं है |
यूं आर द मोनार्क ऑफ आल यूं सर्वे | एम् आई राईट ?
ऐसा पेशा ही है मेरा | मुझे थोड़े में ही संतोष होता है यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है |
ज्यादा की नहीं लालच मुझको , थोड़े में गुजारा होता है – अपने जमाने का बड़ा ही हीट सोंग है | शायद मुकेश दा का बोल है और राजकपूर ने गाया है फिल्म में |
आपने सही फरमाया |
मैं भी कॉलेज के दिनों में सगे – सहेलियों के साथ फिल्म देखना नहीं भूलती थी | हिन्दी फिल्म की बात ही कुछ और है | लाखों करोड़ों लोग देखते हैं | व्यापार और साथ ही साथ रोजगार शिखर पर है |
फ़िल्मी दुनिया की बात ही निराली है | जो जीता वही सिकंदर |
इसीलिये तो बोलीउड के नाम से मुम्बई जाना जाता है | सभी युवक – युवतियाँ मुंबई जाते हैं किस्मत आजमाने | एकबार चांस मिल गया हीरो या हिरोईन का और फिल्म चल गई तो रातों रात सेलेब्रेटी | फिर कहना क्या ?
आप को किसी वस्तु – विषय का पूरा ज्ञान है |
यही दिन रात करती हूँ | जो जिस पेशा में रहता है , उसमें वह दक्षता प्राप्त कर लेता है | मैं नित्य सैकड़ों लोगों से भिन्न – भिन्न कामों के लिए मिलती जुलती हूँ तो लोगों के बारे ,उनके स्वभाव , आचरण , बात – व्यवहार के बारे में जान जाती हूँ | इसमें आश्चर्य करनेवाली कोई बात नहीं है |
बात कर ही रहे थे कि घोसाल बाबू दरवान के साथ प्रवेश किये और टेबुल पर नाश्ता लगवा दिए | टी – पोट , मिनरल वाटर रखकर चलते बने |
तो मैं क्या कह रही थी ?
इसमें आश्चर्य करनेवाली कोई बात नहीं है |
यहीं से फिर बात को आगे बढानी है | आपसे बातचीत करने में मुझे बड़ा , वो क्या कहते हैं आप कभी – कभी ?
आनंद |
हाँ तो मुझे बड़ा आनंद मिलता है |
अब … ?
लाईये मैं साम्भर चटनी निकाल कर आपको परोसता हूँ |
नहीं , नहीं , अभी मैं इतनी बुढी नहीं हुयी हूँ कि इतना अदना सा भी काम न कर सकूँ |
आपके हाथ बहुत ही …?
नाजुक है , यही न ! सभी लोग , जो अपने हैं , जिनसे घुलमिल कर बात होती है , वे भी यही बात कहते हैं कि …? लेकिन आप से किस बात का तकुल्लुफ़ , यह हाथ है न … अपनी मुष्टिका को दिखाती हुयी बोली , एक बार किसी किसी को जड़ दूँ तो गश खाकर गिरेगा जमीन पर और धुल चाटने लगेगा |
नारी कोमल भी है पुष्प सा और कठोर भी है बज्र सा |
पुष्पानी म्रिदुलानी , बज्रादपी कठोरादपी |
आपने सही आकलन किया | आपको संस्कृत भाषा पर अच्छी पकड़ है |
लेखक हूँ न इसीलिये ! सभी भाषाओं का थोड़ा बहुत ज्ञान रखना पड़ता है |और ऐसे भी संस्कृत हमारी देव भाषा है | अत्यंत समृद्ध भडार है इसका | आई मीन टू से संस्कृत इज ए रीच लेंगोएज | हमारे जितने भी शाश्त्र – वेद – पुराण – उपनिषद – सभी तो संस्कृत में ही है | कालीदास देश के महानतम लेखक हुए , उनकी विश्व प्रसिद्ध सारी पुस्तकें संस्कृत में ही तो है | शकुंतला और मेघदूत संस्कृत भाषा की धरोहर है |
मैं तो समझता हूँ कि आपका नामकरण आपके परिवारवालों ने सूझबुझ के साथ रखा – “ शकुंतला |”
मेरे नाना जी संस्कृत भाषा के प्राध्यापक थे | उन्हें इस भाषा से इतना लगाव एक तरह से प्रेम था कि उसने अहर्निश इसी में डूबे रहते थे , निमग्न रहते थे | मैं जब पैदा हुयी तो उन्होंने एलानिया घोषणा कर दी कि नतिनी का नाम शकुंतला ही होगा | किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई उनकी बात को काटे | पर मुझे लोग प्यार व दुलार से शुकू – शुकू कहकर पुकारते हैं |
शुकू नाम में अतिशय मीठास है मधु सा … |
आप भी न कभी – कभी ऐसी … मुझे रोमांचित कर देते हैं | आपमें मन मोहने में दक्ष हैं | ऐसी सटीक आकलन कर देते हैं कि महज एक दो शब्दों में कि नारी चारो खाने चित्त , आप की मुरीद हो जाती है , जैसे मैं | आप की कहानियाँ पढ़ी और वशीभूत हो गए , आपको मेल द्वारा आमंत्रित करके बुला लिया |
आप की कहानी “ आपने मेरी जिंदगी बदल डाली “ पढकर तो मैं इतनी प्रभावित हुयी कि मैंने अपनी जिंदगी बदल डाली | समझ नहीं आ रहा था कि इतनी अकूत संपत्ति का क्या करूँ | अकेला जीव , प्राणी | मैंने एक चाय बागान खरीद लिया | सैकड़ों महिलाओं को रोजगार , परिवार का भरण – पोषण | निःशक्त महिलाओं के रहने के लिए घर बनवा दिए | उनके बाल – बच्चों के पढ़ने – लिखने के लिए एक विद्यालय | अपने लिए एक गेस्ट हाउस | सप्ताह में एकबार जरूर जाती हूँ | सबसे मिलती जुलती हूँ , बड़ा —?—आपने कौन सा शब्द कहा है ?
आनंद |
बड़ा आनंद मिलता है , शुकुन भी |
अपना न रहने पर भी यदि हम गैर को गले लगा तो अपनों से भी अधिक प्यार व सम्मान प्राप्त होता है |
धन की तीन गति होती है – ऊपभोग , लोक कल्याण , यदि न हुआ तो धन का विनाश हो जाता है | हम शिक्षित लोगों को आगे बढ़कर लोक कल्याण का अलख जगाना चाहिए समाज में – देश में | इससे मन को शान्ति तो मिलेगी ही , समाज भी उन्नत होगा |
एक संस्कृत में प्रेरक श्लोक है:
“ विद्या ददाति विनयं , विनयात याति पात्रत्वां ,
पात्रत्वात धनाम आप्नोति , धनात धर्म , तत् सुखं |
अर्थात …
अर्थ समाझाने की आवश्यकता नहीं है , मैं संस्कृत प्राध्यापक की नतिनी हूँ , मेरे जीन में संस्कृत है |
बहुत खूब !
विषयान्तर हो जाती हूँ | बात कहाँ छूट गई थी |
मैंने कहा था आप को किसी विषय – वस्तु का पूरा ज्ञान है तो आपने कहा था कि इसमें आश्चर्य करनेवाली कोई बात नहीं है |
मैं साफ़ – साफ़ , स्पष्ट , क्लियर कट बात बोल देती हूँ , चाहे किसी को हर्ट भी करे तो मैं परवाह नहीं करती | यह आदत बचपन से ही है मुझमें | मेरे पिताजी वकील थे | साफ़ – साफ़ बोल देते थे बहस के दौरान , चिकनी – चुपड़ी बातों से उन्हें निहायत नफरत थी | वही मेरे जीन में भी है | अब तो जीवन का अंतिम पहर शेष है , क्या सोचना ?
सचमुच में मैं आपके विचारों से इतना प्रभावित हूँ कि मेरे पास शब्द नहीं है कोई कि मैं कैसे … ?
कहा न कि मैं बखान पसंद नहीं करती | मुझे बखान से एलर्जी है | बखान गर्त में धकेल देता है इंसान को एक न एक दिन इसलिए मैं … ?
इफ आई से ए एस्पेड , ए एस्पेड , ह्वाट इज द हार्म ?
आई डिफर फ्रॉम यू | कोई – कोई बुरा मान जाते हैं , गलत मीनिंग लगा लेते हैं |
आपने ठीक कहा |
मैं हमेशा ठीक ही कहती हूँ , लेकिन लोग मेरी बात का मतलब उलटा – पुल्टा लगा लेते हैं |
लोगों का काम है कहना … ?
इसीलिये तो मैं परवाह नहीं करती उनकी | ऐसे लोग गुमराह करते हैं लोगों को अपने दंभ के बल पर |
अब खाया जाय | चुपचाप , मौन | चाय के वक्त चुस्की ले लेकर बाकी बातें पूरी करेंगे | क्यों ?
हम नास्ता करने में व्यस्त हो गए |
आहिस्ते – आहिस्ते हम खाते रहे | आध घंटे में हाथ – मुँह धोकर निश्चिन्त हो गए |
टी – पोट से उसने ही चाय बनाई – एक कप मेरी ओर बढा दी और दुसरी स्वं लेकर |
अपलक हम एक दूसरे को निहारते रहे और चाय की चुस्की भी लेते रहे |
एक बात कहूँ मन की ?
निःसंकोच | किस बात का दुराव ?
आपके इतने लंबे – लंबे , काले – काले बाल , घने – घने बाल , लत – लतावों की मुवाफिक कमर तक लहराते हुए , और ?
और ?
इनके बीच मुखारविंद जैसे घने – काले बादल के मध्य में पूर्णिमा का चाँद !
आप तो शायर की तरह …!
संगमरमर में तराशा हुआ तेरा शफाफ बदन …
देखनेवाले तुझे ताजमहल कहते हैं … क्यों ? वह बीच में ही टपककर पंक्ति पूरी कर दी |
आप भी न … ? आपका दोष नहीं है , हर कलाकार को नारी के प्रति सम्मोहन , आकर्षण व आशक्ति होती है , तो आप कैसे अपवाद हो सकते हैं ?
असल में मैं मेकअप में यकीन नहीं करती | वाहियात खर्च है और तनाव अलग से , समय का अपव्यय भी | मैं जैसी हूँ वैसी ही रहना प्रेफर करती हूँ |
मैं भी क्रितमता से अपने को कोसों दूर रखता हूँ |
हमारे विहार में एक महान कवि हुए हैं | मैं बचपन से उनका फैन भी हूँ | दो प्रेरक पंक्ति इस सन्दर्भ में सुना दूँ यदि इजाजत हो तो …?
इजाजत है |
तुम रजनी के चाँद बनोगे या दिन के मार्तंड प्रखर ,
एक बात है हमें पूछनी फूल बनोगे या पत्थर |
उसने आगे की पंक्ति अपनी सुरेली आवाज में देकर मुझे मात दे दी :
तेल फुलेल क्रीम कंघी से नकली रूप सजाओग , या असली सौंदर्य लहू का आनन पर चमकाओगे |
रामधारी जी की ओजस्वी कविता की पंक्ति है | क्यों ?
सौ में सौ मार्क्स |
क्या खूब लगती हो , बड़ी सुन्दर लगती हो …
उसने इसी पंक्ति को आगे बढ़ाई :
अब डिनर पर फिर मुलाक़ात होगी |
बाय !
उसने भी हाथ हिलाकर शुक्रिया अदा किया मुस्कराकर |
मैं चला आया , देखा नंदू दरवाजे पर ही मेरी प्रतीक्षा कर रहा है |
हम भीतर कमरे में गए | इत्मीनान से सोफे में बैठ गए दोनों | मैंने ही बात शुरू की |
नंदू ! जानते हो आज तो गजब ही हो गया |
वह दाहिने तरफ थी पीछे – पीछे बाहर तक मुझे छोड़ने निकल आई | उसकी कलायी मेरी से बार बार सट रही थी – अलग हो रही थी |
नंदू ! मुझसे रहा नहीं गया , मर्द हूँ न ! इतना रोमांचित हो गया कि उसकी उँगलियों को अपनी उँगलियों में …
फिर ? नंदू कौतुहल भरी नज़रों से घूरते हुए पूछा |
फिर मैं अपनी पकड़ मजबूत करता गया , करता गया और वह नरम होती गई , होती गई | देखा उसका मुखाविंद टेसू की फूल की तरह रक्त – रंजित हो उठा है | कुछ नहीं बोली |
ऐसी अवस्था में किसी महिला का कुछ नहीं बोलना क्या माने रखता है ?
सरेंडर कर दी आपके सामने , अब आप कुछ भी … ?
पागल हुए हो क्या ? हो सकता है वह मुझे अपने जाल में फांस रही हो |
हो सकता है | कोई बड़ी बात नहीं है | आप अपने चाल में माहिर हैं तो वह अपने चाल में |
नंदू ! मुझे एहसास हो रहा है कि उसको मुझसे प्यार हो गया है |
अच्छी बात है |
पगलाए हो क्या ? इसे अच्छी बात की संज्ञा देते हो | मैं गर्त में जा रहा हूँ | कहीं शादी प्रोपोज कर दी तो ?
क्या होगा ,एक है , एक और सही | मर्द लोग तो चार – पाँच बीवियां रखते है , आप दो रखेंगे तो क्या हर्ज है | आपकी कौन सी औकात कम है उससे ?
और तुम्हारी चाची झाड़ू लेकर … ?
वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा | प्रोपोज करेगी तो ना – नू कर सकते हैं , लेकिन ध्यान रहे रिफिऊज मत कीजियेगा | इतना मालदार ऊपर से खूबसूरती , सोने पे सुहागा !
अवसर बार – बार इंसान के हाथ नहीं लगता | भुना लीजिए एक और घर बसाके | आम का आम गुठलियों का दाम |
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लेखक : दुर्गा प्रसाद |