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DIWANGI – PART – XIII

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Suspense and Thriller with tag bedroom | fear | night

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Hindi Story – DIWANGI – PART – XIII
Photo credit: kseriphyn from morguefile.com

शुकू ! मेरे साथ रहने से कोई असुविधा ?
कोई नहीं |
कोई आलोचना ?
उसकी मैं परवाह नहीं करती | कुछेक लोगों का स्वभाव ही होता कि वे बिना किसी ठोस आधार के नुक्ताचीनी करते हैं | बेवजह कीचड उछालते हैं | उनका कोई काम – धाम नहीं रहता | मुफ्तखोरी करते हैं | संसार है इतना विशाल , तरह – तरह के लोग रहते हैं | सब की न तो समुचित शिक्षा – दीक्षा हो पाती है न ही अच्छे संस्कार दिए जाते हैं | परिवार को उत्तम पाठशाला की श्रेणी में रखा गया है | माताएं , जिनके गर्भ में संतान दस महीनों तक पोषित होती हैं , का पुनीत दावित्व व कर्तव्य होता है कि विशुद्ध आहार लें , विशुद्ध आचार – विचार तन – मन में सृजित करें | महापुरषों की आत्मकथा पढ़ें – उनकी जीवनी में जो मानवीय – मूल्य और जीवन – आदर्श से सम्बंधित प्रेरक प्रसंग हों उनको आत्मसात करें | अच्छे आहार , अच्छे आचार – विचार – संयमित विहार , नियमित ध्यान , योग व समुचित व्यायाम अपने तन – मन को स्वस्थ रखते ही हैं पेट में पल रही संतान को भी एक अच्छा संस्कार भी प्रदान करते हैं |

यह कहावत सर्वविदित है कि जैसा खाओगे अन्न वैसा ही होगा तन और जैसा बोओगे बीज वैसा ही काटोगे फसल |

बोओगे बबूल तो आम कहाँ से पाओगे ?

“जैसा कर्म करोगे , वैसा फल देंगे भगवान ,
यह है गीता का ज्ञान , यह है गीता का ज्ञान |”

ये बातें मैं नहीं कह रहा हूँ , बल्कि हमारे शाश्त्र , पुराण व उपनिषदों का कथन है , अमृत – वाणी है |

मिस्टर प्रसाद ! आपने अपनी बातों से , विचारों से बड़ी ही सारगर्भित तत्यों व तथ्यों को मेरे समक्ष ही नहीं अपितु जग के समक्ष रख दिया विशेषकर उन नारियों के समक्ष जो माँ बननेवाली हैं |

आपको तो संस्कृत के प्रकांड विद्वान की नतिनी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है तो आप इस कथा से परिचित होंगी कि जब हिरण्यकशिपु की धर्मपत्नी गर्भवती हो गयी और प्रह्लाद का आविर्भाव होनेवाला था तो नारद मुनी उनकी पत्नी को एक़ ऋषी – आश्रम में छोड़ कर आये थे ताकि बालक संस्कारी जन्म ले |

हाँ , इस कथा को मेरे नाना जी यदा – कदा मेरी माँ को सुनाया करते थे |

शुकू ! वक्त का ख्याल है ?
ग्यारह बज रहे हैं |

अब मुझे जाना है गेस्ट हाउस |

पागल हुए हैं क्या ? ग्यारह बजे ठीक कम्पाउंड में ग्रे हाउंड खोल दिए जाते हैं | मेरे और घोषाल बाबू के सिवाय वह किसी को न तो पहचानता है , न ही सुनता – गुनता है | आप बाहर निकल नहीं सकते | बड़ा ही खूँखार ब्रीड का है |

तो ? (मैं तो चाहता ही था कि वह स्वं अपने मुँह से बोले कि आज मुझे उन्हीं के बेडरूम में सोना है | और मेरा अनुमान सही निकला)

मिस्टर प्रसाद ! आपको आज मेरे शयन – कक्ष में रात गुजारनी है |

अजब – गजब ! एक पलंग ही तो है | और हम दो जन – उसमें एक पुरुष …?

दुसरी नारी वो भी जवाँ व खूबसूरत !
मुखर पड़ी :
“जवाँ है मोहब्बत , हंसीं है जमाना ,
लुटाया है दिल ने,खुशी का खजाना |
मोहब्बत करें, खुश रहें , मुस्कुराएं ,
न सोचे हमें क्या कहेगा ज़माना ||”

क्या खूब ! नूरजहाँ की बोल ! नौशाद की जादुई संगीत | “अनमोल घड़ी” फिल्म |

गाने के बोल कैसे लगे ?

प्रासंगिक ! मधुर – मधुर !

क्या हुआ ? आप मेरे साथ ही सोयेंगे एक ही बेड पर – अगल – बगल |

आप मेरी अग्नी – परीक्षा लेना चाहती है | मुझसे नहीं होगा , मैं सोफे पर ही या कोई चटाई – वोटाई होगी तो उसी पर …?

आपको यहाँ पर भी … मुझे समझाना पड़ेगा क्या अंगरेजी में |
आपको मेरे बगल में सोना है | कह दिया सो कह दिया |

आदेश या हिटलरशाही ?

जो समझिए | एक रात की ही तो बात है , फिर आप कहाँ और मैं कहाँ ?

मेरा इन अजीब – गरीब बातों से बुरा हाल | नंदू की चेतवानी याद आने लगी कि जैसे – जैसे रात जवाँ होते जायेगी मैडम अपना असली रूप में आने लगेगी और फिर आपको दबोच लेगी – बड़ी बेरहमी से बेमौत मारेगी और फिर उसी गटर में … खलाश !

तो सोना ही पड़ेगा ?

एक ही बात को कितनी बार रिपीट करूँ ? चलिए कहकर उसने मेरे हाथ पकड़ लिए मजबूती से कि कहीं हाथ छुडाकर भाग न जाऊँ |

एक मिनट ?

ठीक है , ठीक है | बाथरूम सामने ही है |

वह समझी मुझे पेशाब लगी है | हाथ छोड़ दी | मैं एकांत में आ गया और मंत्र से अपनी देह (शरीर) को बाँध लिया ताकि कोई भी प्रेतात्मा मेरा बाल भी बांका न कर सके |

देर कर दी ?

निपट भी …

समझी | चलिए | बारह बजने से पहले ही पहुंचना है |

अब तो कोई शक की गुन्जाईस ही नहीं रही |

“रात बारह बजे के बाद वह पिशाचिनी बन जाती है |” , – नंदू की चेतवानी दिलोदिमाग को झकझोरने लगी |

मरने का भय किसको नहीं होता !

शुकू आगे – आगे मैं उसके पीछे – पीछे | अब भी बीस मिनट बाकी था बारह बजने में |

जल्दी चलिए तेज क़दमों से |

शुकू खिलखिलाकर हँस पड़ी और बोली , “ डर लगता है क्या ? मैं बारह बजे के बाद पिशाचिनी बन जाती हूँ इस बात से क्या ? हमारे लोंगों ने ही यह बातें आपके कानों में डाल दी होगी , क्यों ?

अब तो मुझे सोलहो आने यकीन हो गया कि बेटा दुर्गादास गए काम से | अब तो अश्त्र – शस्त्र का प्रयोग करना ही होगा , किसी भी कीमत में शुकू को नहीं सोने देना है , रात भर जगाकर रखना है | बिछावन पर पाँव तक रखने नहीं देना है | मन ही मन सारी योजना बना डाली |

मुझे नींद आ रही है जोरों की , पलकें मुंदी जा रही हैं | बिछावन पर गिरते ही नींद की आगोश में धडाम !

बाजीराव मस्तानी मूवी देखनी है |

नहीं | कल देख लेंगे |

जो वादा किया है निभाना पड़ेगा |

वादा ? कैसा ? कब ? कहाँ ? आपा खोने लगी |
मैं चली , मैं चली … ?

आपको नशा चढ़ते जा रहा है | मुझे आपका सर धुलाना पड़ेगा |

और आप क्या – क्या करेंगे मेरे साथ ? एक ही बेड ! अगल – बगल !

कुछ नहीं | आश्वस्त रहिये |
कुछ नहीं ? वह हँसने लगी खिल खिलाकर , अट्टहास !

###
लेखक : दुर्गा प्रसाद |
Contd. To XIV…


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