तो क्या आपने मन में ठान लिया है कि आप इन तीनों अश्त्र – शस्त्र का प्रयोग कर उनकी पाशविक चंगुल से बचके निकल जायेंगे | जो अतिथि गृह में रात भर रहते हैं उनकी जान तो बची नहीं और आप उनके साथ रात बिताने की बात सोच रहे हैं ? यह तो वही बात हुई कि बिच्छु झाड़ने का मन्त्र नहीं जानते और सांप के बिल में हाथ डालते हैं | परिणाम के बारे में कभी सोचा है ?
अच्छी तरह सोच लिया है |
कच्चा चबा जायेगी | इस बात को गाँठ में अच्छी तरह बाँध लीजिए | मेरे भी बाल धुप में नहीं सफ़ेद हुए हैं | तजुर्वा है वर्षों का | इसलिए मैं आख़री बार चेता रहा हूँ कि आपको कोई न कोई बहाना बनाकर भागने में ही भलाई है | अच्छे बच्चे जिद नहीं करते | जिद को थूक दीजिए और मेरे साथ मेरा घर चल चलिए | फिर सुबह आ धमकेगें | महज बारह घंटे की तो बात है | सांझ का भागा भागा हुआ नहीं कहलाता | दस बहाने है जबाव देने के |
नहीं तो मुझे एक सटीक उपाय सुझा है | सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे |
जल्द बतलाओ |
आप जब डिनर लेंगे , दस बजे मैं आपको फोन करूँगा | आप कह दीजियेगा कि एक मित्र का फोन है , जल्द बुलाया है उसकी वाईफ सीरियस है |
ये सब फरेबी मुझसे न होगी | मर जाएँ तो बेहतर है ,लेकिन थूठ का सहारा न लूँगा |
एक झूठ बोलने से कई झूठ बोलने पड़ते हैं | सत्यमेव जयते ! सत्य की विजय होती है | झूठ का मुँह काला |
तब दृढ संकल्प कर लिया है आपने की रात मैडम के साथ ही उनके शयन कक्ष में व्यतीत करेंगे |
हाँ | यही अंतिम निर्णय है | बहादुर कभी भय डर के नहीं मरते | जो डर गया , समझो मर गया उसी घड़ी , उसी पल |
इसका मतलब आप बहादुर हैं ?
मतलब क्या ? हूँ , निःसंदेह | और देखोगे सम्मान के साथ सुबह बाहर निकलूंगा | मैडम मुझे अतिथिगृह तक छोड़ने आएगी |
यह आत्मविशवास है कि गर्व ?
जो समझो | अब तो कल सुबह ही इसका फैसला तुम्हीं करोगे , मैं नहीं |
नौ बजने ही वाला है |
दरवान आता ही होगा मुझे बुलाने |
मैडम सजधज कर तैयार होगी |
इसमें क्या शक है | औरत है | श्रींगार तो उसका धर्म है , स्वभाव है , जन्मजात गुण है |
और पुरषों को जाल में …?
ऐसी – वैसी , उल्टी – सीधी बात किसी संभ्रांत महिला के बारे सोचना अनुचित है | बिना सच्चाई जाने पहले से अपने आप निर्णय मत करो , किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचना सरासर अन्याय है |
दरवान आ रहा है , वो देखो ! मैं चला | तुम अपना ख्याल रखना और ईष्टदेव से विनती करना कि मैं सुरक्षित ड्रेगन से निकल कर बाहर आ जाऊँ अहले सुबह |
ठीक है | ऐसे सतर्क रहना है आपको , चौकन्ना रहना है आपको | हिरन की तरह |
ठीक है |
नहीं मान रहे हैं , तो एक पसंदीदा गाना सुनकर जाईये |
तुम मुझे भयभीत करने से बाज नहीं आओगे ?
जो समझिए , पर दो – चार पंक्तियाँ ही सुनकर जाइए | आखिर मेरा जो होगा , सब ईश्वर के हाथ में है |
सुना दो |
नंदू सुर , लय के साथ सुनाने लगा तो मैं कुर्सी में बैठ गया |
“ टूटा – टूटा एक परिंदा ऐसे टूटा ,
कि फिर जूड न पाया |
लूटा – लूटा , किसने उसको ऐसे लूटा ,
कि फिर उड न पाया |
गिरता हुआ वो आसमां से ,
आकर गिरा जमीन पर |
ख़्वाबों में फिर भी बादल ही थे ,
वो कहता रहा मगर ,
कि अल्लाह के बंदे हंसदे ,
अल्लाह के बंदे !
जो भी हो कल फिर आएगा |
नंदू का चेहरा कुमुदिनी पुष्प की तरह म्लान था | दिल को मजबूत करके बिना पीछे देखे मैं चल दिया |
दरवान आगे – आगे और मैं पीछे – पीछे |
रात्रि के नौ बज रहे थे |
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(Contd. To XII …..)
लेखक : दुर्गा प्रसाद , अधिवक्ता , समाजशास्त्री , मानवाधिकारविद , पत्रकार |
दिनांक : ४ सेप्टेम्बर २०१६ , दिन : रविवार |