मेरे मन का चोर इस बात से चिंतित था कि क्या महिला पत्रानुसार दो सौ रुपये पेड़ के नीचे ईंट से दबाकर रख देगी , यदि रख भी देगी तो उन चेन स्नेचर को पुलिस से क्या नहीं पकड़वा देगी | यदि उसने रुपये रख भी दिए तो क्या उचक्के रुपये लेने वो भी अपनी जान को जोखिम में देकर आयेंगे | यदि आयेंगे भी तो रात्रि में कब आयेंगे , यह भी किसी को मालूम नहीं | ऐसी परिस्थिति में रातभर जागकर पहरा देना होगा , उन चोरों पर नज़र रखनी होगी कि कब आते हैं और रुपये लेकर रफ्फू चक्कर हो जाते हैं | या रुपये रखकर महिला निश्चिन्त हो जायेगी ?
यदि पुलिस को खबर करती है महिला और बाई चांस चोर अपना इरादा बदल देता है और नहीं आते हैं तो पुलिस के सामने झूठी साबित होगी और व्यर्थ का लफड़े में पड़ेगी सो अलग | लेने के देने पड़ सकते हैं | उधेड़ बुन में रात्रि के नौ बज गए |
फिर दिमाग में पाठक जी की याद आ गई | वह भी मेरी तरह जागता होगा और टोह में होगा कि पड़ोसन कब ऊपर तल्ले से नीचे उतरती है और पेड़ की जगत पर दो सौ रुपये ईंट से दबाकर रख देती है और चुपचाप बालकोनी में आकर बैठ जाती है यह जानने के लिए कि दोनों सो कोल्ड भतीजे कब आते हैं और रुपये लेकर उड़न छू हो जाते हैं |
पाठक जी पड़ोसन की कार्य – शैली पर नज़र गडाए हुए हो सकते हैं | उसके मन में भी एक चोर हो सकता है | मुझे पाठक जी के साथ कुछेक घड़ी रहने से आभास हो गया था कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है यह आदमी |
हो सकता है कि नज़र रखे हुए हो कि कब पड़ोसन दो सौ रुपये रखकर लौट जाय और इत्मीनान से गेट का दरवाजा बंद करके अंदर सोने के लिए चली जाय और यह महाशय झटपट सीढ़ी से उतर कर दो सौ रुपये हथिया ले | मुफ्त के दो सौ रुपये क्या कम रकम होती है ?
अभी रात्रि के दस बजते होंगे | महाशय जी ने झाँक कर देखा है कि महिला अब भी वहीं बैठी है चोरों के इन्तजार में |
महाशय जी की पत्नी कई बार आवाज लगा चुकी है कि आकर सो जाय , पर एक मिनट – एक मिनट कहकर टालते आ रहे हैं |
ईश्वर से विनती करते हैं कि महिला जल्द अंदर चली जाय | यह भी आशंका है कि कहीं इसी बीच चोर न आ जाय और रुपये लेकर नौ दो ग्यारह न हो जाय तो उसका सारा प्लान चौपट हो जाएगा |
मैं जो भी सोच रहा हूँ सभी कल्पना पर आधारित है , लेकिन सभी अनुमान तर्कशाश्त्र से संपुष्ट हैं |
मैं जिन संभानाओं से सौ प्रतिशत आश्वश्त हूँ वे हैं :
१: महिला नारी है और नारी का हृदय मोम सा होता है , ज़रा सी आंच पाने से पिघल जाता है | युवकों ने जिस सम्मान व विश्वास के साथ पत्र लिखा है , वह दो सौ रुपये अवश्य रख दी होगी |
२: जब दो सौ रुपये रख दी होगी तो इत्मीनान से निश्चिन्त होकर घर के अंदर चली गई होगी | इन्तजार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता ?
३: महाशय जी ताक में होंगे जैसे ही पड़ोसन के दरवाजे बंद हुए होंगे , झटपट सीढ़ी से उतरे होंगे और दो सौ रुपये लेकर वापिस आ गए होंगे |
४: चोर रात्रि में किसी वक्त आये होंगे और दो सौ रुपये न पाकर निराश लौट गए होंगे |
हकीकत में क्या घटना घटी होगी , कल शाम को ही, जब उसी चाय की दूकान पर जहाँ पाठक जी ने मुझे आने का निमंत्रण दिया है, मुझे पता चलेगा, तबतक सच्चाई जानने के लिए आप भी इन्तजार कीजिये |
मैं एक बात का पूर्वानुमान लगा सकता हूँ कि यदि पाठक जी का मुखारविंद खिला – खिला सा हो और मिलते ही चाय का ऑफर दे दे तो इसमें दो मत नहीं कि दो सौ रुपये इन्हें न मिले होंगे – इनकी योजना के मुताबिक़ और इसके विपरीत रोनी सूरत बनाकर मुझे चाय के पैसे देने के लिए बोले ( आग्रह करे ) तो समझ लेंगे कि इनकी दाल नहीं गली |