” फकिर “
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काफिरों की टोली लेकर चल दिए ह्म,
हर गमको भुलाने हर खुसि को अपनाने|
मंज़िल मिली जिसे जिस जहाँ,
मोड़ कर रुख वो चल दिए|
भूल गए थे मंज़िल तेय करने,
अकेले ह्म फकिर रेह गए|
छूटा जो साथ सबका दिखा आगे अंधियरा|
मूड कर देखा तो सब रास्ते ही बदल गए|
अब इस अंधियरे को तेय करने,
अकेले हम फकिर राह गए|
गिरते उठते तेय करते हैं ये फासले,
ताकी जो मंज़िल मिली तो गर्व से लौट पाएँ,
अगर नहीं मिली तो कमसे कम लोगों के यादों में ही राह जाएँ|
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” उमीद “
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गमों की चादर ओढा कर,
हम चल दिए इन सुनसान रास्तों पर,
जहाँ मौत भी एक फरिश्ता है|
देख् कर लोगों का लालच,
हम मन बैठे थे की ,
आतंक ही इनका देवता है|
ये जीना भी क्या जीना,
जहाँ मौत भी मनुष्य को लुभाता है|
हाये फिर ये उमीद कैसे,
जो जीना सीखा दे केह कर,
क्या मौत भी कोई रास्ता है|
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” हुआ बारिश का आगमन “
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ग्रीष्म की गर्मी से,
सुखी ये धरती थी,
प्यासी ये धरती थी,
जब हुआ बारिश का आगमन|
दूर कहीं जंगल मैं ,
कोई मोर नाचने लगा,
खुसि का उल्लाश जताने लगा,
जब हुआ बारिश का आगमन|
ऊँची दल पर बैठा कोयल,
फिर गाने लगा,
अपना मधुर गित सुनाने लगा,
जब हुआ बारिश का आगमन|
बेह उठी धाराये,
नदियों मैन अया वेग,
जब हुआ बारिश का आगमन|
बीहड धरती पर,
छा गयी हरयाली,
फिर लहेराई फसलें,
जब हुआ बारिश का आगमन|
ग्रीष्म की गर्मी से,
ताप रही धरती का,
फिर सुलझा जीवन,
जब हुआ बारिश का अगमन|
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” जो होता नहीं “
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आँखें हैं नम,
फिर भी आँसू बेहते नहीं|
दिल है की कर्हारे लेता,
फिर भी मुँह से कुछ निकलता नहीं|
थम ता है जीवन,
फिर भी वक्त थम ता नहीं|
कह्नैन को होता तो बहुत कुछ है,
फिर भी कोई कुछ कहता नहीं|
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कवी:- रतिकांत