” रिश्ता अनजाना सा ”
ये कैसी ख़ामोशी है ,
तेरे -मेरे बीच ।
न तूने कुछ कहा ,
न मैंने कुछ कहा ।
न तेरी आँखों मे वो प्यार ,
न तेरे होठों पे कोई इकरार ।
फिर भी है कुछ गहरा सा ,
जो लगे कुछ अपना सा ।
क्यूँ तुमसे मिलके लगे की ,
तेरे -मेरे बीच कुछ तो है
अनजाना सा ।
क्यूँ तेरी हर इक बात ,
बिताया जो पल तेरे साथ ,
इक सुकून सा देता है मुझे ।
प्यार नहीं तू मेरा पर ,
साथ चाहूँ फिर भी तेरा ।
शब्दो से परे इक अनजाना सा ,
कोई तो है खामोश सा रिश्ता ।।
मेरी कलम से …..
” रिश्ते ”
“जो लफ्जों का हो मोहताज ,
वो रिश्ता नहीं ।
थोपे जायें जो हम पे ,
वो रिश्ता नहीं ।
थोपे हुए रिश्तों मे ,
घुटन भरी होती है ।
दिल से जो बने रिश्ते ,
उनमे गहराई छुपी होती है ।
कुछ रिश्ते तो हम खुद ही बनाते हैं ,
पर कुछ रिश्ते तो खुद ब खुद बन जाते हैं।
रिश्ते जब दिल पे बोझ बन जायें ,
तो उनेह उतार फेंकना ही अच्छा है ।
देने लगे सुनाई जब ख़ामोशी भी
किसी के दिल की ।
तो रिश्ता वही अज़ीज़ समझो ,
निभेगा जिंदगी भर खूबसूरती से ।।”
मेरी कलम से …..
” अनछुआ अहसास ”
“जब भी चाहा मैंने
कि पुकारूँ तुमको ,
तो जाने क्यूँ ये सोच कर ,
लब ये मेरे खुल नहीं पाये।
कही तुम्हारा वो खामोश इकरार ,
हकीकत मे इंकार न बन जाए ।
मेरी आँखों मे भी हैं कुछ
ख्वाब सुनहरे से ,
पर डरती हूँ कही ख्वाब
अधूरा न रह जाय ।
इक अनछुआ सा एहसास कही ,
मेरे दिल को छू जाता है ।
ये खुशबू है कैसी जिसमे कोई,
फूलों की गंध भी नहीं
फिर भी बिखरी है हवाओ मे ।
कोई गीत भी नहीं , न कोई ग़ज़ल ,
न कोई साज़ है , न ही कोई आवाज़ है ।
समाया है फिर भी दिल की हर धड़कन मे
अनजाना सा बोल कोई ।
शायद ये प्यार का वो जज्बा है
जिसे स्पर्श नहीं महसूस किया जाता है ।। ”
मेरी कलम से ………