प्रदूषक
तुम एक अनचाहा मेहमान हो ,
वातावरण में हमारे,
टिक टिक क्षण प्रत्येक ,
मेरे विषय में मुझे बताता,
चुटकी लेते वैज्ञानिक – राजनेता,
टौन्ट कस्ते बड़े – छोटे ,
विद्यार्थी -शिक्षक मज़ाक बनाते ,
माँ – बच्चे मुझ पर हँसते ,
तुम एक अनचाहे मेहमान हो ,
कब जा रहे हो मेहमान—–
कह कर बच्चा बच्चा मुझे चिढ़ाता I
गूँज है ,गली गली मोहले में ,
कूड़े को सड़क पर मत फैंकना ,
फैक्ट्रियों का वेस्ट ,
नदियों में मत डालना,
प्लास्टिक थैलियों का ,
प्रयोग मत करना ,
नहीं तो यह अनचाहा,
मेहमान टिक जायेगा,
हमारे ही प्रांगणो में I
समय अब बदल रहा है ,
मेरे अंदर का बच्चा,
भी अब कहता है ,
तुम एक अनचाहा मेहमान हो I
परन्तु बन्धुओं! तुम,
ही ने तो मुझे बुलाया है,
वातावरण को गन्दा कर ,
तुम्ही ने ज़बरदस्ती मुझे ,
यहाँ बिठाया है i
मै तुम्हे नहीं करूँगा माफ,
जंगलों को तुम,
ही ने किया है साफ़ i
प्रदूषण चक्रव्यू का ,
एक अंग हूँ ,मैँ प्रदूषक ,
और महीनों सालों से,
तुम्हारे समक्ष हूँ ,
इस वातावरण में हूं ,
परन्तु अब समय के
चक्रव्यू में ऐसा बंध गया हूँ
क़ि समय का प्रत्येक क्षण ,
कभी मुझे रुलाता है ,
कभी मुझे हँसाता है i
हाँ यह अनचाहा कटु सच है,
मै एक अनचाहा मेहमान हूँ ,
मैं अपनी इस जग हँसाई से,
खुद ही हैरान -परेशान हूँI
परमाणु ब्रहमांड
परमाणु तो सहभागी हैं ,
इस अदभुत ब्रहमांड के ,
क़ुछ अहम् कार्यों के लिये ,
मानो उधार दिये गये हैं ये ,
डीएनए को मेरे l
हैरत गंज अन्दाज़ में, मैं सोचती ,
मुँह में दबाये उंगली ,
कि जब मैं इस जहाँ से कूच कर जाऊँगी ,
जा कर कहाँ रहेंगे ,ये नन्हे परमाणु मेरे ,
यह प्रशन बार बार घूमता ,
जिज्ञासा लिये ज़हन में मेरे !
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अदभुत ब्रह्मांड को कोटि कोटि प्रणाम ,
एवं अनंत शुभ कामनाओं सहित —–
सुकर्मा रानी थरेजा
अलुम्नुस् आई आई टी -कानपुर
Ph.D(Chemistry(1985))
Associate Professor
Ch Ch College
Kanpur