[Editor’s Choice: Moral Hindi Poem
क्या तुम वही मनुज हो!
पूछता हूँ खुद से, क्या तुम वही मनुज हो!
नव पादप कोमल पल्लव नव पुलकित उल्ल्हास,
उस आँगन में जहाँ सिंचे थे जहाँ पले थे,
उसे भूल इस अभिज्ञ मरू में,
क्या तुम वही मनुज हो!!
रामलीला में रावण के वध पर
जय श्री राम का नारा हर्ष उल्ल्हास,
अब सच्चाई इमान वफ़ा कि लाश पे अट्टाहास
मर्यादाओं का नित अब, करते तुम उपहास
क्या तुम वही मनुज हो!!
जिस पिता की परछाईं देती थी,
शीतल निर्भय वास,
खुश हो आज उसी को देकर आजीवन वनवास,
नव पादप कोमल पल्लव,
क्या तुम वही मनुज हो!!
जिस माँ के आँचल में छिपके,
खुद को निर्भय, रक्षित जाना
उस माँ को विसरित, तुम भयाक्रांत व मन अशांत,
क्या तुम वही मनुज हो!!
जिसने तुमको राह दिखाया,
सही गलत का फर्क सिखाया,
आज उन्ही को पाठ पढ़ाते और अपनी औकात दिखाते,
क्या तुम वही मनुज हो!!
सबकुछ सीखा सबकुछ जाना,
वही किया जिसे मन माना,
फिर भी विह्वल, अधीर, विकल हो,
क्या तुम वही मनुज हो!!
नव पादप कोमल पल्लव,
क्या तुम वही मनुज हो!!
(यह कविता मैंने होली के रंग में, भंग कि तरंग में, और पिताजी के जन्मदिन के उमंग में लिखी !!)
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