अनजाने में नहीं ,कहीं जानबूझकर ……………. हम खोजते हुए तुम्हे थे , उस दिन चले आए ,
तुमसे मिलना , एक इत्तिफ़ाक़ कह के ………. अपने मन को समझा , वहाँ से लौट आए ।
कुछ तो था , जिसने तेरी ओर हमें …… यूँ था खींच लिया ,
नज़रों के मिलने पर , बहाना बनाना ……… क्योंकि हमने भी था , तब सीख लिया ।
तेरी हर चहल कदमी को , धीरे-धीरे से ………. हम कहीं से देख आए ,
अनजाने में नहीं ,कहीं जानबूझकर ……………. हम खोजते हुए तुम्हे थे , उस दिन चले आए ।
सोचा ना था , कि तुम कुछ इस कदर …… अपना हाथ यूँ बढ़ाओगे ,
मेरे हाथों को बहाने से , अपने हाथ में लाने को ……… ऐसे मिलाओगे ।
बहुत देर तक हम भी , तेरे हाथ की तपिश को ………. अपने हाथ में थे झेल पाए ,
अनजाने में नहीं ,कहीं जानबूझकर ……………. हम खोजते हुए तुम्हे थे , उस दिन चले आए ।
जितना याद तुम्हे था कहीं , उतना ही याद हमें भी था …… अपनी उन मुलाकातों का ,
मगर जानबूझकर जितना तुम अनजान थे , उतना ही हम अनजान बन ……… पी रहे थे रस उन सभी बातों का ।
फिर भी तेरे साथ की खातिर , हम तेरी उन्ही बातों का ………. मुफ्त में और मज़ा देख आए ,
अनजाने में नहीं ,कहीं जानबूझकर ……………. हम खोजते हुए तुम्हे थे , उस दिन चले आए ।
तुम्हारे वो अंदाज़ , जिसमे कहीं परवाह थी मेरी …… हमें सोचने पर मजबूर करे ,
कि कुछ तो होगा रिश्ता हमारा-तुम्हारा , जो इस तरह से ……… हम तेरे वजूद को , अब यहाँ महसूस करें ।
उसी वजूद में , हम तुम्हारे दिल में ………. अपनी छिपी तस्वीर कहीं देख आए ,
अनजाने में नहीं ,कहीं जानबूझकर ……………. हम खोजते हुए तुम्हे थे , उस दिन चले आए ।
जाते-जाते तुम्हे , मुड़ कर नहीं देखा हमने …… हम मजबूर थे कहीं ,
मगर अगर कोई साथ देता , तो बिकने को सबसे पहले ……… तुम्हे रोक लेते हम वहीँ ।
तुम्हारी नज़दीकिओं से डरके हम , चुपचाप से ….. वहाँ से भाग आए ,
अनजाने में नहीं ,कहीं जानबूझकर …… हम खोजते हुए तुम्हे थे , उस दिन चले आए ।
कभी पढ़ो अगर , लिखा हुआ ये तराना …… हमारे दिल का तुम ,
तो बस इसके नीचे अपने हाथों से , सज़ा देना कुछ शब्द ……… ऐसे ही रिम-झिम ।
देखें तो हम भी ज़रा , कि क्या तुम भी समझ सके थे वो शब्द …. जो हम तुम पर उस दिन थे , वहाँ बिखेर आए ,
अनजाने में नहीं ,कहीं जानबूझकर ….. हम खोजते हुए तुम्हे थे , उस दिन चले आए ।।
***