अपनी वफाओं का मैं …… कैसे इम्तिहान दूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।
अक्सर सुबह और शाम …… तकती हूँ तेरी राहें ,
तेरे समझाने पर फिर ………. छोड़ देती तेरी बाहें ,
मन को फिर मैं अपने ………. तेरे नाम का हिज़ाब दूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।
दिन और महीने कैसे …… हौले से बीत गए ,
दोनों की मसरूफियत में ………. अरमाँ भी सूख गए ,
एक इशारे पर तब भी मैं ………. तेरे क़ुर्बान हूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।
लम्बी और काली रातें …… बीती तेरी याद में ,
खत्म ना होने वाली बातें ………. तेरे संग कटी साथ में ,
तन्हाई में लेकिन अब मैं ………. सभी रातों का खुद जवाब दूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।।
प्यासा सा तू भी है …… ये जानती हूँ मैं यहीं ,
अपनी प्यास को मैं ………. छुपा दूँ बादलों में कहीं ,
बरखा आने पर मैं ………. तेरी प्यास और बढ़ा सी दूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।
जीने का ढंग तुझसे …… सीख कर क्या गुनाह किया ?
पीने यौवन की मस्ती ………. अपने ख़्वाबों में तुझे लिया ,
तेरे मचलने पर मैं ………. खुद को एक नया नाम दूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।
उदास सा मनवा मेरा …… चुपचाप चला जाता है ,
होठों पे आए लफ़्ज़ों को ………. बंद करके भाग जाता है ,
लबों को मेरे खोलने का ………. देख तुझे फिर ईनाम दूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।
आज और कल के बीच …… चंद लम्हों का फासला रह गया ,
तेरे चले जाने पर ………. मेरे आने का सिलसिला शुरू हुआ ,
नज़रों के मिल जाने पर ………. हर पलों का तब हिसाब लूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।
अपनी वफाओं का मैं …… कैसे इम्तिहान दूँ ,
तेरे बुलाने पर मैं …… देख अपनी जान दूँ ।।
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