वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह ,
हम बढ़ा ना सके कदम उनकी तरह ,
एक फासला हम दोनों के बीच गहराता गया ।
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
सात फेरों में उन्होंने कहा था संग चलेंगे ,
मगर दो कदम भी वो रुक ना सके हमारे लिए ,
अपने कदमो को हमारे संग मिलाना उन्हें गँवारा नहीं,
तो फिर कैसे भला उम्र भर संग चलें ?
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
हम हँस ना सके उनकी बातों पर अक्सर ,
वो रो ना सके हमारे दर्द में होकर के शामिल ,
जब दूरियाँ थी इतनी आदतों में समाई ,
तो फिर कैसे भला उम्र भर संग चलें ?
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
उनकी बातों में होती थी अक्सर एक ऊँचाई ,
हमारी बातें दबते-दबते उन्हें अब ना देती थीं सुनाई ,
जब शब्दों का पतन इस तरह से हुआ ,
तो फिर कैसे भला उम्र भर संग चलें ?
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
वो सपनो से परे हकीकत का दम्भ लिए ,
हम हकीकत और सपनों की चादर ओढ़े हुए ,
जहाँ सपनो का अक्सर होता था एक दफ़न ,
तो फिर कैसे भला उम्र भर संग चलें ?
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
वो नशे और वासना को अपनी जागीर बना ,
हमें नशे में ना पाकर अपनी मर्दानगी दिखा ,
जब इस अंतर्मन का एक पतन करें ,
तो फिर कैसे भला उम्र भर संग चलें ?
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
फासला हम दोनों का अब अपनी तरह से सर उठाए ,
ना वो झुकें ना हमारी समझ अब कुछ आए ,
जब फासले में बचे ना बाकी भरने को कुछ ,
तो फिर कैसे भला उम्र भर संग चलें ?
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
तुम रुकना नहीं अब अपने कदम यूँही बढ़ाना ,
हम रुके भी तो मुड़ गए जहाँ हमें था जाना ,
जब मिलने की कोई वजह बाकी ना रहे ,
तो फिर कैसे भला उम्र भर संग चलें ?
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह …………
वो बढ़ा ना सके कदम हमारी तरह ,
हम बढ़ा ना सके कदम उनकी तरह ,
एक फासला हम दोनों के बीच गहराता गया ।
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