बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर फिर भी तेरा इंतज़ार करती रही मैं ,
पागल सी होकर तेरे इश्क़ में शायद ,
बिन पलकों को झपके तेरी राह तकती रही मैं ।
हर पल ये मुझे लगता था कि तू आएगा ,
मेरे होठों पर एक मुस्कान को खिलाएगा ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर फिर भी तेरी चाहत में जलती रही मैं ।
मुझे थी बेताबी जिस हसीं घडी की ,
उस पल का बहाना ढूँढा था मैंने ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर फिर भी हर पल में तड़पती रही मैं ।
तूने इशारा किया गर जो होता ,
मैं दौड़ी-दौड़ी सी आकर तेरे क़दमों पे गिरती ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर फिर भी तेरे क़दमों को गिनती रही मैं ।
तुझे खुदा माना मैंने ओ जाने – जाना ,
मैंने तेरी इबादत में सज़दे किये थे ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर तेरी परछाई की भी पूजा करती रही मैं ।
मुझे मिटने से ज्यादा तेरे साथ की खलिश थी ,
मैं सँवरती रही सिर्फ तेरे इश्क़ में ही ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर तेरे साथ को अपने सपनों में सँजोती रही मैं ।
तेरे इशारों पे गिरना फिर गिर के संभलना ,
मैं हर इशारे का मतलब अब समझने लगी हूँ ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर फिर भी तेरे इशारों पर मरती रही मैं ।
मुझे पागल अब लोग कहने लगे हैं ,
मैं प्यासी सी तेरी दीवानी हूँ शायद ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर अपनी दीवानगी से खुद डरती रही मैं ।
तूने साथ मेरे संग जितने भी पल थे बिताए ,
उन पलों में ही कर गई मैं तेरी गुलामी ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर फिर भी तेरी नीयत पर मरती रही मैं ।
तेरा इंतज़ार लगता है मुझे सबसे प्यारा ,
ना इसमें कोई बंदिश , ये है दिलों का खेल सारा ,
बुला ना सकी मैं तुझे आवाज़ देकर ,
मगर फिर भी तेरा इंतज़ार करती रही मैं ।।
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