Chaalees din – Hindi poem on wishes of a woman. She wishes that those forty days should never end because those days her love behaves the way she wants.
काश दिन इक्तालिस्वां कभी आये न ,
हमें “उनसे” दूर कभी ले जाए न ,
हम ढूँढे न “उस” नशे को सिर्फ किताबों में ,
ऐसी अगन लगे जिसे कोई और बुझाए न ।
काश उन चालीस रातों का साथ रहे ,
काश उन मीठे लम्हों की सौगात रहे ,
काश उन्हें फिर से हमें पाने की ,
दिन और रात बस एक ठंडी सी आस रहे ।
काश “वो” समझे हमारे दिल~ए~अरमान ,
काश “वो” रोकें उठते दिल का तूफ़ान ,
काश “वो” छोडें उस झूठी दुनिया को ,
जो दे जाती है पल में हमें कितने निशाँ ।
काश “उन्हें” लगन ऐसी लग जाए ,
काश “वो ” अपने प्रभु का पा जाएँ ,
काश वो रु~ब~रु हों हमसे तन्हाई में ,
जिसमे अक्सर बहती हैं तेज़ हवाएँ ।
“चालीसा” होता है जब भगवान के पूजन का ,
चालीस दिनों का “उनका” ,
तब साथ होता है मेरा …..”उनका”,
और उन अतरंग क्षणों का ।
जब पूरा हो जाता है “उनका” …… प्रभु गुणगान ,
तब फिर से लौट जाते हैं “वो” ……अपने नशे में भगवान ,
बस उस इकतालीसवें दिन को सोचकर …..अपनी नज़रों में ,
सिमट जाते हैं फिर से मेरे ……दिल के अरमान ।
हाँ मुझे नफरत है ………उस “शराब” से ,
हाँ मुझे नफरत है …….उस “किताब” से ,
जिसमे लिखा होता है ……..”नशा” अपनायो ,
अपनी गृहस्थी भूल …….उसमे सिर्फ मस्त हो जाओ ।
काश “उन्हें” पाने की चाहत …….बरकरार रहे ,
मेरे बहकते कदमों पर …….उनका राज़ रहे ,
काश “वो” समझें ……मेरी भोली सी चाहत को ,
जिसको पाने के लिए हम ……उनके साथ रहें ।
हाँ ….हमें दिनों की चाहत है …….सिर्फ चालीस की ,
जिसमे हर पल हमें ……फक्र होता है ,
गर मौत भी आये कभी …..बेताबी में ,
तो सिर्फ उन चालीस दिनों के सपने ……..ये दिल संजोता है ।
कैसी अजब सी …..ये दास्ताँ है ?
कि हम उनके “नशे” के …….आज भी दरमियाँ हैं ,
“वो” जिसे अक्सर कहते हैं ……”ख़ुशी” जीवन जीने की ,
वही हमारी सबसे …….बुरी दुनिया है ॥
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