चोरी-चोरी से मुझे निहार के ,
चोरी-चोरी से मुझे सँवार के ,
चोरी-चोरी से चले जाते हो ।
चोरी-चोरी से तुम्हे निहार के ,
चोरी-चोरी से तुम्हे अपना मान के ,
चोरी-चोरी से चली जाती हूँ ।
रोज़ मिल ना सके ,
एक-दूजे से हम ,
तो क्या गिला ,
जो करते चोरी सनम ,
आते चोरी-चोरी देखने एक-दूसरे को ,
जाते चोरी-चोरी देख के एक-दूसरे को ,
चोरी-चोरी से मुझे निहार के ,
चोरी-चोरी से मुझे सँवार के ,
चोरी-चोरी से चले जाते हो ।
चोरी-चोरी से तुम्हे निहार के ,
चोरी-चोरी से तुम्हे अपना मान के ,
चोरी-चोरी से चली जाती हूँ ।
इसे भी इश्क़ कहते हैं ,
जिसमे एहसासों के दरिया बहते हैं ,
मिलने का गम तब नहीं होता ,
जब नैनों में किसी का दर्द सहते हैं ,
भरने चोरी-चोरी अपना मन एक-दूसरे से ,
भरने चोरी-चोरी अपना तन एक-दूसरे से ,
चोरी-चोरी से मुझे निहार के ,
चोरी-चोरी से मुझे सँवार के ,
चोरी-चोरी से चले जाते हो ।
चोरी-चोरी से तुम्हे निहार के ,
चोरी-चोरी से तुम्हे अपना मान के ,
चोरी-चोरी से चली जाती हूँ ।
ऐसी चोरी का अपना ही एक मज़ा ,
वो है कहीं बस इतना पता ,
वो मिलेगा अभी कोई परवाह नहीं ,
वो मिलेगा कभी जब मिलेगी घडी ,
देखने चोरी-चोरी उसका घर चोरी से ,
रुकने चोरी-चोरी उसके बिन चोरी से ,
चोरी-चोरी से मुझे निहार के ,
चोरी-चोरी से मुझे सँवार के ,
चोरी-चोरी से चले जाते हो ।
चोरी-चोरी से तुम्हे निहार के ,
चोरी-चोरी से तुम्हे अपना मान के ,
चोरी-चोरी से चली जाती हूँ ।
हमने पूछा कि क्यूँ की थी चोरी बता ?
उसने कहा ये चोरी नहीं सिर्फ तेरी सदा ,
मुझे ना पाकर तुम अक्सर जितना घबराते ,
तुम्हे ना पाकर हम भी बेचैन तब हो जाते ,
पढ़ते चोरी-चोरी तब ख्याल तुम्हारे चोरी से ,
देते चोरी-चोरी तब जवाब तुम्हे चोरी से ,
चोरी-चोरी से मुझे निहार के ,
चोरी-चोरी से मुझे सँवार के ,
चोरी-चोरी से चले जाते हो ।
चोरी-चोरी से तुम्हे निहार के ,
चोरी-चोरी से तुम्हे अपना मान के ,
चोरी-चोरी से चली जाती हूँ ।
हमने भी तब अपनी चोरी बताई ,
कि अक्सर देखते हैं तुम्हारे “Status” की लिखाई ,
तुम कल रात भी सारी रैना जगे थे ,
और फिर अगली सुबह देर से ही उठे थे ,
सोचते चोरी-चोरी तब तुम्हारे लिए चोरी से ,
छिपते चोरी-चोरी तुम्हारी नज़र से , तब चोरी से ,
चोरी-चोरी से मुझे निहार के ,
चोरी-चोरी से मुझे सँवार के ,
चोरी-चोरी से चले जाते हो ।
चोरी-चोरी से तुम्हे निहार के ,
चोरी-चोरी से तुम्हे अपना मान के ,
चोरी-चोरी से चली जाती हूँ ।
यूँ चोरी-चोरी से एक-दूसरे को “Online” में चुराना ,
बन गया है अब ये नया , कैसा फ़साना ?
जहाँ दिल तो अक्सर धड़कते ख़ुशी से ,
मगर ये टूटते , जब ना मिलते किसी से ,
जीते चोरी-चोरी तब तुम्हारे लिए चोरी से ,
मरते चोरी-चोरी तब तुम्हारे लिए चोरी से ,
चोरी-चोरी से मुझे निहार के ,
चोरी-चोरी से मुझे सँवार के ,
चोरी-चोरी से चले जाते हो ।
चोरी-चोरी से तुम्हे निहार के ,
चोरी-चोरी से तुम्हे अपना मान के ,
चोरी-चोरी से चली जाती हूँ ।।
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