This Hindi poem Highlights the mental state of a female writer who is unable to express the words of any poetry in the absence of Her Lover.But when He reunites with Him her “words” are dancing and she is ready to expose it.
मेरे हर “शब्द” में कल रात …..फिर से घुँघरू बजने लगे ,
जो “शब्द” कभी ज़हन में उतरना भूल गए थे ,
वो तुझे पाकर ….कागज़ पर उतरने को तरसने लगे ।
तू बन गया है अब मेरी ……कवितायों की शैली का मकसद ,
तेरी ही जुस्तजू से ये दिल अक्सर अनजाने में धड़कने लगे ,
हाँ तेरे नाम से ही ये “शब्द”……अपनी गति पकड़ने लगे ।
बहुत सोचा कि कोई और इस दिल में आकर बस जाए ……तो कुछ लिख दूँ ,
एक ज़ज्बात उसके भी साथ लाकर के कुछ कह दूँ ,
मगर तेरी ही साँस में ये साँस अपनी मिलाकर ……देख कैसे लिपटने लगे ?
मेरी तो सोच पर भी हो चला है …..इख्तियार अब तेरा ,
तू बाँटे प्यार और ये करें दीदार सा तेरा ,
ना जाने क्यूँ मेरे ये “शब्द” तुझे देख कर ……खुद~ब~खुद बहकने लगे ।
सुना है लोग अक्सर …….दीवानगी में मचलते हैं ,
कभी कुछ गाकर ,कभी मचल कर खुद को दीवाना करते हैं ,
मगर मेरे तो “शब्द” पैरों में घुँघरू बाँध …..देख कैसे थिरकने लगे ।
तुझे किया हमने रोज़ ……अपनी तन्हाईओं में बहुत याद ,
कभी तुम साथ में होते थे ……तो कभी बिस्तर पर सजती थी शमा~ए~रात ,
लेकिन अब तो इन “शब्दों” को बेकाबू भी …..तुम अनजाने में करने लगे ।
आज काट कर अपना हाथ …..मैं लहू से लिखने पर मजबूर हुई ,
जो “शब्द” पहले स्याही से उकेरे जाते थे …..उनमे रंग भरने की एक हूक फिर से दिल में हुई ,
यही तो बात है तुझमे …….जो मेरे “शब्द” इतने रंगीन बनने लगे ।
तुमसे मिलती हूँ तो हज़ारों शब्दों की ….माला पहन लेती हूँ ,
तुम ना मिलो तो सफ़ेद कफन की चादर सी रह जाती है ….इस सीने में ,
देखो आज मेरे “शब्द” फिर से …….तुम्हारे स्वयंवर में बंधने लगे ।
मेरे मरते हुए हर “शब्द” में कल रात …..फिर से घुँघरू बजने लगे ,
वो इतना हिले ……इतना डुले ……कि यहाँ आने को तरसने लगे ,
हाँ तेरे वजूद से ही हम इन शब्दों के ……..भ्रमजाल में उलझने लगे ॥
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