एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ,
एक सहारा तो दिया होता तूने ……. मेरा मन बनाने का ।
मुझे पता था कि तू है वहाँ …… मुझ पर नज़र रखे हुए ,
बस रोकता है खुद को तू ………. अपनी गरज का दम्भ लिए ,
एक बहाना तो दिया होता तूने ……… मुझे नज़दीक लाने का ,
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ।
मैं तेरे इशारे का इंतज़ार कर …… भेजती रही तुझे पैगाम ,
तूने हर पैगाम पर मोहर लगा कर अपनी ………. देखा सिर्फ उसमे मेरा नाम ,
एक फ़साना तो लिखा होता तूने ……… अपने संग मिलाने का ,
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ।
हर बार मुझसे इशारे की उम्मीद …… क्यूँ करता है तू दिलबर ,
मेरा इशारा होता है एक धीमी हँसी ………. तेरा इशारा होता एक खंज़र ,
एक खंज़र मोहब्बत का फेंका होता तूने ……… मेरा दम्भ मिटाने का ,
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ।
इशारे की पहल तुझसे हो …… ऐसी सोच थी मेरी ,
इशारे की पहल मुझसे हो ………. ऐसी सोच थी तेरी ,
उसी सोच को एक हक़ीक़त बनाया होता तूने ……… मुझे याद दिलाने का ,
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ।
मैंने तेरी हर हरकत पर …… बड़े गौर से अपनी नज़र रखी ,
तू देगा एक इशारा ………. इस सोच पर अपनी समझ रखी ,
एक बहाना तो दिया होता तूने ……… मुझे अकड़ दिखाने का ,
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ।
कश्मकश में इशारे की गति …… मंद पड़ गई ,
मद्धम-मद्धम सी वो होठों की हंसी ………. पल में मिट गई ,
एक नज़ारा तो दिया होता तूने ……… अपने बुलाने का ,
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ।
मैं चुपचाप से चली गई …… तेरा इशारा ना पा के वहाँ ,
मैं खुद को नज़रबंद कर गई ………. तेरे इशारे से होकर के ख़फ़ा ,
एक बुलावा तो दिया होता तूने ……… मेरे लौट आने का ,
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ।
एक इशारा तो किया होता तूने …… अपने आने का ,
एक सहारा तो दिया होता तूने ……. मेरा मन बनाने का ।।
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