An Endless Search: In this Hindi poem the beloved is again and again trying to search Her Love though She had a fixed time to meet Him the same.
ये मेरा पागल मन ………तुम्हे बार-बार क्यूँ ढूँढे ?
हर बार तेरे निशानो को ……इन नज़रों से क्यूँ चूमे ?
जानती हूँ मैं कि तू है नहीं …..इस वक़्त मेरी राहों के आगे ,
मगर फिर भी उन राहों की धूल को …..ये पहले से ज्यादा अब क्यूँ छू ले ?
मैंने सोचा था तेरे बिन अब कुछ दिनों का …….मुझे भी आराम मिलेगा ,
ख्यालों में जब तू ना होगा ….तब सुबह-शाम एक पैगाम मिलेगा ।
खुद को कर क़ैद किसी मस्ती में ……मैं गीतों को गुनगुनाने लगी ,
मगर हर गीत में मुझे फिर क्यूँ ……तेरी ही याद सताने लगी ?
ये मेरा पागल मन …….उन गीतों को बनाकर सरताज़ ,
जब भी धुन कोई छेड़े …..तभी बजता है एक नया साज़ ।
ये मेरा पागल मन ……….तुम्हे बार-बार क्यूँ ढूँढे ?
हर बार मेरे गीतों में ……तेरे नाम का अक्षर सज़ा उसे क्यूँ चूमे ?
वो वक़्त हम दोनों का तय है …..जब तुम फिर से यहीं मिलने आओगे ,
अपने साथ मेरी भी तन्हाई की ……हर महफ़िल को रंगीन बनाओगे ।
मगर तेरे इंतज़ार में हम ……पहले से ही वो महफ़िल सज़ा बैठे ,
बिना तेरे ही अपनी तन्हाई को ……तेरी राहों में बिछा सब कुछ कह बैठे ।
हम रोज़ तेरी राहों में ………घंटो बन बिस्तर बिछ जाते हैं ,
तुम संग लेटो या ना लेटो ……….फिर भी तेरी साँसों की महक पाते हैं ।
हर बार दिल ये सोच धड़कता है ………कि तू अब से है मेरा हमराज़ ,
हमें बना अपनी मधुशाला ……तू आता है पीने मेरी लाज ।
मुझे रोज़ चौबीस घंटों के ……..चौबीस लम्हों की सिर्फ प्यास रहे ,
जिसमे तू हो ,मैं हूँ …..और तेरे-मेरे अतरंग क्षणों की एक आस रहे ।
ये मेरा पागल मन ………तुम्हे बार-बार क्यूँ ढूँढे ?
मेरे उलझे हुए गेसुओं में ……..तेरी उँगलियों की माला को ऐसे क्यूँ गूँधे ?
मेरा ना ख़तम होने वाला इंतज़ार ही …….हर बार बेबस कर खींच लाता है तुझे मेरे पास ,
कोई कसमें नहीं ,कोई वादे नहीं ………फिर भी ये पागल मन तुझे पाने की रखता है एक आस ॥