हम तो कहने से रहे , तुम्हे अपना ………. हाल~ए ~ दिल नादान ,
चाहे ये जिस्म जले , या चाहे निकले …… अपनी ये जान ।
हम तो कहने से रहे …….
तुम्हे पता है , एक शर्म~ ओ ~ हया ………. रोकती है हमें , अक्सर ,
क्या करें बोलो सनम , तुम तो समझो …… इस दिल का ये आलम ।
हम तो कहने से रहे …….
धीरे-धीरे से , तुम्हारे सामने ………. खुलना शुरू किया ,
मगर हमेशा रहेगा , वो पर्दा …… जो लफ़्ज़ों का था कभी यहाँ ।
हम तो कहने से रहे …….
हमें पता है , कि तुम खड़े हो ………. इस बार लेने , हमारा इम्तिहाँ ,
कि तड़प के कहेंगे , हम तुम्हे …… आओ ना अब , मेरी जान ।
हम तो कहने से रहे …….
हमारी ज़िद भी सुनो , और सुनकर के हँसो ………. कि हम नाकामयाब , होंगे शर्तिया ,
और वो कह ना सकें , जिसके लिए तुम …… लेते हो , हमारा इम्तिहाँ ।
हम तो कहने से रहे …….
कहना हर बार ही , तुम्हे पड़ेगा ………. याद ये रखिए ,
भला एक नाज़नीन की , अदाओं से …… क्यूँ करते हो , शिकवे-गिले ।
हम तो कहने से रहे …….
दिल हमारा भी , रोता है तन्हाई में ………. याद करके वो लम्हे ,
और हम ये सोचते हैं , कह दें तुम्हे …… कि रोकते हैं खुद को , तुम्हारे लिए ।
हम तो कहने से रहे …….
मगर याद कर , ऐसी बेहयाई ……… ये लफ्ज़ हो जाते हैं , फिर सिले ,
एक मर्द और औरत के , धर्म से …… दफ्न होते हैं , कहीं डरे ।
हम तो कहने से रहे …….
कहो ना तुम , हर बार ही ……… ये है इल्तज़ा मेरी ,
ना लो इम्तिहान , सनम और कोई …… ना दो सज़ा यूँ ही ।
हम तो कहने से रहे …….
तुम कहोगे , अपना हाल~ए ~ दिल ……… हम बंधेंगे , तुम्हारे संग ,
तुम्हारे कहने पर , तुम्हारे दिल में बसेंगे …… और भरेंगे नए रँग ।
हम तो कहने से रहे …….
हम तो कहने से रहे , तुम्हे अपना ………. हाल~ए ~ दिल नादान ,
चाहे ये जिस्म जले , या चाहे निकले …… अपनी ये जान ।
हम तो कहने से रहे …….
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