उसकी लिखी किसी भी कहानी में ………मेरा नाम न आया ,
फिर भी उसके लिखे हर शब्द में …..मैं कहीं न कहीं समाया ।
बिना किसी रिश्ते के …..वो इस कदर ……मेरे दिल~ओ ~दिमाग में छाया ,
कि अब साँसे भी गिनता हूँ ……..तो लगता है …..कि उनमे उसका अक्स है पाया ।
इश्क में अक्सर लोग …..”जिस्मानी जुड़ाव ” के कदरदान होते हैं ,
लेकिन कभी-कभी “मानसिक जुड़ाव” भी ……ऐसे इश्क में अपना नाम सँजोते हैं ।
ये मैंने सिर्फ ……कोरे-कागज़ पर लिखे शब्दों से ….पढ़कर ही नहीं फ़रमाया ,
इस जुड़ाव का एहसास मैंने हर पल …..उसके साथ बिताए लम्हे से अजमाया ।
हम दोनों ही थे …..दो अलग-अलग नावों पर …..सवार हुए नाविक ,
हाथ में पतवार थामे खेमे जा रहे थे ……..अपनी नईया को होकर भावुक ।
सिर्फ एक हल्का सा टकराव …..हमें एक-दूसरे के …..इतने करीब ले आया ,
कि नावें तो वही रहीं ……मगर उनकी पतवार में ……एक बदलाव आया ।
अपनी-अपनी नईया में बैठकर ही ……हम अपने विचारों को ……एक-दूसरे से मिलाने लगे ,
वो उधर से …….और हम इधर से ……एक मीठा सा गीत गुनगुनाने लगे ।
रास्ता हमारा तय था ……मंजिल भी अपने लक्ष्य पर मेहरबान थी ,
बस थोड़ी देर साथ चलने की ………हम दोनों की …..ये खूबसूरत सी “Demand” थी ।
एक ऐसी चाहत ……..जिसमे चारों ओर से ……..हम सुरक्षित थे ,
फिर भी हर सुरक्षा में भी ……अपनी मस्ती में मस्त थे ।
बिना किसी रिश्ते और नाम के ……हम “मानसिक मोहब्बत” की …..डोर में बंधने लगे ,
इश्क ऐसा भी होता है ……..ये सोचकर …..जोर-जोर से हँसने लगे ।
ऐसे इश्क को लोग ……शायद ही कभी समझ पायेंगे ,
क्योंकि इस इश्क में ……..सिर्फ दो आत्मायों के …….दिल ही मिल पायेंगे ।
इसलिए जब भी कभी आपको ये लगने लगे ………कि आप भी ऐसे इश्क के गुलाम हैं ,
तो उस इश्क को एक “कहानी” समझें ………..और उसके कथाकार को ……न कोई नाम दें ।
उसकी लिखी किसी भी कहानी में ……..मेरा नाम आज तक न आया ,
क्योंकि उसकी लिखी हर कहानी को ……मैंने हर पल अधूरा ही पाया ।।