ये इशारों-इशारों की मोहब्बत ………… इशारे-इशारे में फ़ना हुई ,
ये इशारों-इशारों की जवानी ………… इशारे-इशारे में और जवाँ हुई ।
उसने इशारे-इशारे से मेरे ………. तन-मन पे डाली ऐसी नज़र ,
कि मैंने इशारे-इशारे में ………. सौंप दी उसे अपने तन-मन की खबर ।
यूँ ही इशारों-इशारों में, कह गए हम दोनों …………. इशारों से लिपटी हज़ारों कहानी ,
यूँ ही इशारों-इशारों में, सह गए हम दोनों …………. इशारों के तड़प की अनोखी निशानी ।
उसने इशारों-इशारों में कहा ………… रुख से ज़रा नक़ाब तो हटा ,
मैने तब इशारों-इशारों में ………… नक़ाब को दे दी कहीं और जगह ।
वो तब इशारे-इशारे से करने लगा ………. अपने दिल की खता ,
मैं भी इशारे-इशारे में तब पढ़ने लगी ………. जो था उसके दिल में छिपा ।
उसने इशारे-इशारे में कहा …………. कि जा ना तू आज , कहीं और सनम ,
मैंने इशारे-इशारे में तब कहा …………. कि आ ना तू और करीब हमदम ।
उसने इशारों-इशारों में ………… ले ली तब मेरे मन की कसम ,
मैने इशारों-इशारों में ………… दे दी उसे उसके तन की जलन ।
उसने इशारों-इशारों में ………. अपने तन को दिया थोड़ा सा सुकूँ ,
मैंने इशारों-इशारों में ………. उसके तन से लिया थोड़ा लहू ।
यूँ ही इशारों-इशारों में …………. तन-मन गए अब हमारे भीग सनम ,
यूँ ही इशारों-इशारों में …………. बँधने लगी एक उम्मीद , उसकी कसम ।
उसने इशारों-इशारों में ………… फ़ना होने की तब एक पेशकश रखी ,
मैने इशारों-इशारों में ………… फ़ना होने की एक तरकीब तब , उसको कही ।
ये इशारे-इशारे थे बहुत ही ज़ालिम ….. जिसमे हम दोनों सरोबार हुए ,
नहीं-नहीं कहते हुए भी ……ये दिल एक-दूजे की मोहब्बत से , तार-तार हुए ।
वो इशारों-इशारों में ……. अपने इशारों से मेरी हस्ती मिटा गया ,
मैंने भी तब इशारों-इशारों में ……. अपने इशारों से उसको बहा दिया ।
यूँ इशारों-इशारों में ही ………. मैं उसकी मेहरबाँ हो गई ,
एक अनजान सी मोहब्बत के , गुमनाम सपनों को …… अपनी अँखियों में कहीं सँजो गई ॥
***