जितने बरस तेरे संग थे बिताए ………. उतने बरस तेरे साथ जिए ,
रातों से ज्यादा , दिन में तेरे ………. तेरे आने पे , तेरे नाम लिए ।
तू था मुसाफिर , मैं थी मुसाफिर ……… इस ज़िंदगी की राहों में ,
साथ तो अपना छूटेगा ही , ये जानते थे ………. हम दोनों वीरानों में ,
जितना साथ मिला था तेरा ………. उतने में ही हम तेरे दीवाने हुए ,
रातों से ज्यादा , दिन में तेरे ……… तेरे आने पे , तेरे साथ हुए ।
तूने सिखाया हँसना हमको ……… तूने सिखाया इन राहों में चलना ,
फूलों के आगे , काँटों के भी ………. चुभने पे उफ़ ना करना ,
जितने फूल दिए थे तूने ………. उन फूलों से ही हम तुम्हारे हुए ,
रातों से ज्यादा , दिन में तेरे ……… तेरे आने पे , तेरे ख्वाब बुने ।
बहती हवा जब भी चलती थी ……… बहते थे तब हम दोनों दीवाने ,
ऊँचे गगन को छूने को अक्सर ………. धरती पे लिखते थे अफ़साने ,
जितने अफसानों को लिखा था हमने ………. वो सब तेरे साथ बने ,
रातों से ज्यादा , दिन में तेरे ……… तेरे जाने पे , तेरे बाद जले ।
बहके कदम जब उठने को बढ़ते ……… बढ़ते तेरी ओर सनम ,
रस्मों-कसमों को तोड़ के तब ………. छा जाता बादल उस नीले गगन ,
जितने बरसे थे तब बादल ………. उतने बादल तेरे नाम हुए ,
रातों से ज्यादा , दिन में तेरे ……… तेरे आने पे , ढेरों ख़ाक हुए ।
मेरी जवानी निखरने लगी थी ……… तेरे निराले ढंग से सनम ,
जिस्म में तब और तपिश सी बढ़ी थी ………. जब तूने छुआ मेरे तन को सनम ,
जितनी गर्मी तेरे संग निकली थी ………. उतनी गर्मी से हम बेहाल हुए ,
रातों से ज्यादा , दिन में तेरे ……… तेरे आने पे , कुछ बर्बाद हुए ।
जितने बरस तेरे संग थे बिताए ………. उतने बरस तेरे साथ जिए ,
रातों से ज्यादा , दिन में तेरे ………. तेरे आने पे , तेरे नाम लिए ।।
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