कब आओगे ?
तुम्हारे बिना ये ज़िंदगी थम सी गई है ,
ना फूलों में खुशबू , ना इन होठों पर अब हँसी है ,
एक सपाट सी सड़क पर ये चलती है रोज़ ,
कोई सुनने वाला नहीं है , इसका अब शोर ।
बताओ ना तुम ……… कब आओगे ?
तुम होते हो तो एक बेफिक्र सी रहती है ,
तुम्हारे बिना इस चेहरे पर , अब एक फ़िक्र की लकीर बनी रहती है ,
पहले दो दिनों में ऐसा लगा कि मैं आज़ाद हूँ ,
मगर अब ऐसा लगता है कि , मैं ही सबसे ज्यादा बर्बाद हूँ ।
कहो ना तुम ……… कब आओगे ?
तुम्हारे बिन अब सूनी रातें और कटती नहीं ,
रेत से गर्म बिस्तर पर , अब फूलों की सेज़ सजती नहीं ,
तन्हाई आकर अपने भयानक चेहरे से मुझे डराती है ,
तुम्हारे ना होने के एहसास की तब , कमी और खलती जाती है ।
मुझे क्यूँ नहीं पता कि तुम ……… कब आओगे ?
साथ चलने का वादा था हमारा ,
तुम छोड़ गए हमें , करने कुदरत का नज़ारा ,
हम फिर से बंद कमरे की खामोशी में सिमट गए ,
आधे-अधूरे से , अपने दामन से ही लिपट गए ।
कुछ तो कहो ……… कब आओगे ?
तुम्हारे आने पर ये चेहरा खिलता है ,
तुम्हारे जुमलों से ही , इस जवानी का यौवन भरता है ,
तुम्हारे बिन ये उम्र , अब बढ़ती हुई सी लगने लगी है ,
हर सपने पर जैसे , ना जाने कितनी रोक लगी है ।
भेजो ना सन्देश ……… कब आओगे ?
वक़्त भी अब धीमी गति से बढ़ता है , तुम देखो ,
कुछ करने को बचता ही नहीं , तुम एक बार सोचो ,
स्त्री-पुरुष दोनों के बिना ही , अधूरा है इस जीवन का सफर ,
तभी तो साथ चलते हैं , दोनों एक-दूजे का हाथ पकड़ ।
अब तो बताओ ……… कब आओगे ?
मैं अब विक्षिप्त सी बनकर , तुम्हे एक आवाज़ दूँ ,
कि चले आओ अब तो , मैं तुम्हारी कमी अब महसूस करूँ ,
हर बार लफ़्ज़ों से कहें ये जरूरी नहीं ,
कभी-कभी अंतर्मन की भी सुनो , जो मैं कहूँ ।
बताना जरूर ……… कब आओगे ?
कब आओगे ?
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