In this Hindi poem the poetess and Her lover both are on a track of same competition but due to Her Love She knowingly want to defeat as She wants that Her Lover will become the winner.
तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
तेरी हर जीत में ……मैं अपनी हार का जश्न मनाऊँ कैसे ?
तुझसे जीतने की ……जो कभी एक ख्वाइश थी जाना ,
बता उस ख्वाइश को …….मैं अब राख में मिलाऊँ कैसे ?
वो था एक दौर ज़माने का ……जो गुज़र गया ,
बता अब इस दौर में …….मैं तुझको जिताऊँ कैसे ?
तेरी जीत में ही अब मुझे …….अपनी हार नज़र आती है ,
फिर उस हार को मैं अपने “इश्क” से ……जवां बनाऊँ कैसे ?
तू जीत कर अब पाएगा जो …….वो मेरी हार का इनाम होगा ,
बता अब इन मंजिलों पर तेरे साथ फिर ……..कदम से कदम मिलाऊँ कैसे ?
मैंने कर दिया अब से …….खुद को तेरे हवाले ,
तेरे नए रास्तों में बता फिर …….अब काँटे बिछाऊँ कैसे ?
तू जीतेगा जब ……..तब वो मेरी पहचान का सबब होगा ,
अपनी पहचान को ज़िंदा रखने के लिए ……मैं तेरी पहचान अब बनाऊँ कैसे ?
तुझे जिताने की करती हूँ मैं ……अब से लाखों कोशिश ,
बता हर कोशिश को मैं अब …….एक सिलसिला बनाऊँ कैसे ?
ऐसा चाहने वाला ……बड़ी मुश्किल से मिला करता है ,
जिसे जीतने से ज्यादा …….हारने की ख्वाइश होती है ।
क्योंकि वो उस हार में भी …..जीत का रंग भरता है ,
जिसमे उसके “यार”…….की मेहनत बसी होती है ।
मैं तेरी हर मेहनत की …….एक कदरदान सही ,
बता उस मेहनत को ……..मैं एक कारवाँ बनाऊँ कैसे ?
तू जीतेगा एक दिन …….इससे ज्यादा किसी बात की ख़ुशी नहीं मुझे ,
तू गर हारे ….तो उस हार को …….दुश्मन की नज़रों से बचाऊँ कैसे ?
तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
तुझे अपनी इस …..नई चाहत का साथ निभाने का सबब ……बताऊँ कैसे ?
तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
“जीत” से ज्यादा …..”हार” की कशिश ……से तुझे रिझाऊँ कैसे ?
तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
मैं तेरी जीत की एक दुल्हन बन ……..बता तेरे बिस्तर पर बिछ जाऊँ कैसे ?
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