This Hindi poem highlights the laila majnu love which is still present in this era. The poetess assume herself Lailaa as she knows that Her love is still remains incomplete in this birth too
तुम यहीं पर मिले ….तुम यहीं से गए ,
और मजनू से ज्यादा …..वफ़ा कर गए ,
थोड़े शिकवे किए ….थोड़े वादे किए ,
आँखों-आँखों में सपने ……जवाँ कर गए ।
साँसे साँसों से मिली ही नहीं …..कभी तो क्या ?
धडकनों को धड़कना सिखाया तुमने ,
होठ होठों से मिलने की ख्वाइश में रहे …..तो क्या ?
मेरे चेहरे को हँसना सिखाया तुमने ।
सौ बार भी ढूँढेंगे हम ….जो ज़माने में कहीं ,
तुमसा होगा न कोई यहाँ पर …..हमें पता ,
इसलिए रख दिया ….अपने क़दमों को यूँ ,
उन वादों में ….झूठी पहेली की तरह ।
रास्ते तय किए ….मंजिलें चुन सी लीं ,
फिर भी मालूम है …..कि तुम नहीं हो यहाँ ,
कभी दिल कहे कि …..आ जाओ तुम ,
और कभी ये कहे ……ऐसे ही रहो तुम सदा ।
एक अधूरा सा अरमान लिए ……एक अधूरा सा संसार लिए ,
हम चल पड़े बस तुम्हारी …… चाहतों को लिए ,
जिसमे सपने जो हों ……कई रंगों की तरह ,
और भरने वाला हो उनको ……सिर्फ तुम्हारी तरह ।
आज भी जब मैं सोचूँ ….ये क्या हो गया ?
खेल-खेल में सब कुछ ……फना हो गया ,
दूजे पल ही मुझे फिर ऐसा लगे …..
कि जो भी हुआ ….हज़ार टूटे दिलों से तो बेहतर हुआ ।
ना तुमने कोई हक़ दिया …..ना हमने कोई हक़ लिया ,
बस जितना भी वक़्त लिया ……उसका किया शुक्रिया ,
वो यादें ….वो बातें …….बन गयीं एक ग़ज़ल ,
जिसमे दोनों के कलमे की ………थीं सुर्खियाँ ।
आज भी जिंदा हैं कहीं …..लैला और मजनू ,
बस रूप और अंदाज़ उनके ….बदल गए शायद ,
लैला भटकी -भटकी सी …..फिर रही है कहीं ,
और मजनू को हालातों से ………झूझने की है आदत ।
फिर भी “इश्क” उनका जब-जब भी ……परवान पर चढ़ता है ,
हज़ारों ख्वाइशों पर दोनों का …….दम सा निकलता है ,
लैला चीख-चीख मजनू से ……आने की सदा करती है ,
और मजनू होकर बेजार उससे ……..जाने की फ़रियाद करता है ।
तुम मजनू हो शायद …..मेरी पाक मोहब्बत के ,
जिसमे लैला चुनी भी तुमने …..तो मीलों दूरी से ,
जिसे कसमे और वादे ही ……पता हैं सिर्फ ,
बाकी बंधन वो बाँधे ……सिर्फ जी-हजूरी से ।
ओ मजनू मेरे …..मैं हूँ लैला तुम्हारी ,
ज़रा देखो पलट के ……मैं फिर से यहाँ आई हूँ ,
मगर इस जनम में भी सच तो यही है …..कि मिलना न होगा ……हर बार की तरह हमारा ,
इसलिए अपनी कब्र पर ……तेरे नाम का ……पहला अक्षर छपवाने आई हूँ ॥
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