This Hindi poem highlights the pain of an Indian wife who is frustrated from the drinking habit of Her husband and Now she is planning to get an addiction of the same to get back the company of her husband.
दुनिया शराब दे दे तो ………मैं “नशे” के दो घूँट भर लूँ ,
क्या पता उस “नशे” में ही हमपर ………तेरा साथ मेहरबाँ होवे ।
दुनिया किताब दे दे तो ………मैं तेरे नाम का कलमा पढ़ लूँ ,
क्या पता उस किताब को पढ़ कर ………तेरे दीदार का सज़दा होवे ।
दुनिया से कह दो जाकर ……… कि मैं शराबी नहीं हूँ लोगों ,
बस उनके साथ को पाने अपनी रूह तक ………मैंने “नशे” की चाहत की है ।
गर वो मयख़ाने में जाकर ……… अपनी मय को गले लगाएँ ,
तो हम भी मयकदे में जाकर ……. उनकी मय को चुरा लाएँ ।
खाली बोतल बची थी लोगों ………फिर भला हम कैसे घूँट गले से लगाते ?
उनकी बेवफाई के किस्से ………. बोलो जाकर किसे सुनाते ?
कोई “नशे” की चाबी लाकर …… गर हमपर भी दे घुमाये ,
तो हम भी “नशे” के दो घूँट भरकर ………. उनके संग सुर में सुर मिलाएँ ।
हमने लाख कोशिशें की ……… कि वो छोड़ दें मयख़ाना ,
उनके लिए ही हम अब बन गए ………. किसी और का फ़साना ।
वो छोड़ते नहीं जब ………फिर हम क्यूँ सपने सज़ाएँ ?
उनकी मय में ही अब ……… क्यूँ ना खुद को रंगीन बनाएँ ?
“नशा” गर है हिमाकत ……… तो “नशा” ही बाज़ीगर है ,
इस “नशे” से ही तो अब तक ………हमारा हुस्न बेकदर है ।
अब फिर चली मैं देखो ……… उनके ” नशे” में खुद को डुबाने ,
वो पीयेगें अगर मय को ………तो मैं भी पीने चली मयख़ाने ।
जितना “नशा” था मय में ……उतना “नशा” मैं खुद में भर लूँ ,
उनकी मय की तलब को ……… आज खुद की तलब में बदल दूँ ।
जिस “नशे” को ज़िंदगी ……… वो अक्सर कहा करते हैं ,
उस “नशे” को मौत की अब ……… हम दवा कहा करते हैं ।
दुनिया ज़हर दे दे तो……… मैं उस ज़हर का दामन पकड़ लूँ ,
क्या पता उस ज़हर से ही हमपर ……… तेरा “नशा” नशीला होवे॥
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