This Hindi poem highlights the dilemma of a woman who after an altercation with Her husband was trying to patch-up the issue but as more She thought ,the more she decided that nothing is left in Her heart to reunite the same.
कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ,
मेरा साया भी तड़पता रहा ……… जल जाने को ।
साथ निभाना था एक लंबा सफर ………. जिसको अधूरा छोड़ दिया ,
तेरी फितरत ने कैसे देख ज़रा ………. मुझसे नाता तोड़ दिया ।
अब ना ढूँढेंगे हम ……… फिर से उन्ही राहों को ,
कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ।
कई सालों तक सहते रहे ……… तेरी हुकूमतों का ये गम ,
अब तो चलते भी हैं ……… तो गिनते हैं हम खुद के कदम ।
अब सिखाएँगे हम फिर से चलना ……… उन्ही क़दमों को ,
कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ।
ज़ख्म ऐसे दिए हैं तूने ……… जिसका कोई मेल नहीं ,
प्यार दिल से होता है ………. ये कोई खेल नहीं ।
अब ना मरहम लगाएँगे हम फिर से ……… इन ज़ख्मों को ,
कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ।
सोचा था शाख बहुत बड़ी है ये …… इस पर झूलेंगे तेरे संग ,
कभी बाहों के हिंडोले में ……… और कभी फूलों के संग ।
पर आज खुद ही गिराने चले हैं ……… तेरी इन शाखाओं को ,
कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ।
लोग कहते हैं कि ये बँधन होता है ………. बड़ा ही गहरा ,
क्योंकि इस पर लगा होता है ………एक विश्वास का पहरा ।
सौंपते हैं इस विश्वास को अब ……… इन लहरों को ,
कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ।
तन से तन का मिलन हो जाएगा भी अगर ……… अब तो क्या ?
मन से मन का मिलन होना ……… बहुत मुश्किल अब है ।
क्योंकि मन ही बनता है साया ……… कसमें निभाने को ,
कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ।
रोज़ सोचूँ मैं कि जुड़ जाऊँ ………. तेरे संग फिर से ,
इन छोटी-छोटी बातों पर झगड़े का ……… मोल क्या है ?
मगर मेरा साया फिर और भी तड़पता है ……… जल जाने को ,
ये सोच कि कुछ भी बाकी ना रहा अब तो ………. जुड़ जाने को ।
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