This Hindi Poetry is about relationship,two people meeting after long time and facing awkward situation,unable to find any sentence to start conversation.
एक चुप्पी सी आके खड़ी हो जाती है …
तुम्हारे और मेरे बीच…
जो शब्दों की बांह पकड़ के, उसे खींच के
अपने पाले में ले जाती है…
तुम और मैं पुरजोर कोशिश करते हैं,
की किसी तरह उन शब्दों को वापिस
अपने पाले में ले आयें….
पूरा वाक्य ना सही, कम से कम कुछ शब्द, कुछ बातें
लेकिन सारे प्रयास विफल हो जाते हैं, और
हमें चुप्पी से ही काम चलाना पड़ता है…..
लेकिन चुप्पी अकेले नहीं आती, वो अपने साथ
यादों का तकिया ले आती है, जिसके अन्दर
पुरानी बातों की रुई ठुसी पड़ी है…..
जब तक बातें हमारे बीच खड़ी थी, हम इस
तकिये और रुई को छुपा लेते थे…
की कहीं गलती से तुम्हारी या मेरी नज़र
इस पर ना पड़ जाए…
हम सब के पास एक झिझक की चादर है
जो हम कभी न कभी ओड़ लेते हैं.
जब भी हमारे रिश्तों में कुछ
अनचाहे, अनसुलझे सवाल आके
खड़े हो जाते हैं, उनसे छिपने के लिए हम
उस चादर को ओड़ लेते हैं….
अनचाहे, अनसुलझे सवाल काफी देर तक
लुका-छिपी का खेल खेलते हैं…और फिर
हमें ढूंढ नहीं पाते, और हार मान के
हमारे सामने से चले जाते हैं…
बहुत बार सोचता हूँ, तुमसे मिलते समय
उस चादर को कहीं दूर फ़ेंक दूँ…
और तुमसे ढेर सारी बातें करूँ….
पर तुम कहती हो………
कुछ बातें कल के लिए बचे रहने दो
कल मिलेंगे तो एक दूसरे से क्या कहेंगे
फिर हर बार की तरह बात शुरू करने के लिए
पहले मैं पूछूंगी, आज कौन सा दिन है
और तुम कहोगे …मंगलवार
और फिर ढूंढ- ढूँढकर, कुरेद-कुरेंदकर
यादों के तकिये को उधेड़कर, उसमें से
पुरानी बातों की रुई निकाली जायेगी …….
और फिर हम उस तकिये में, उस दिन
नयी रुई भरकर उस तकिये को सिल देंगे ..
और जब अगली बार फिर मिलेंगे
तो यह नई रुई पुरानी हो चुकी होगी
और तकिया, हर बार की तरह उधड़ने को तैयार…..
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