तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ?
मेरी नीयत फिर से क्यूँ खो रही है ?
तेरे साथ बिताए लम्हों की कसक ,
सच कहूँ तो मेरे नैनो को भिगो रही है ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरे साथ मचलता था जब ये यौवन ,
तब जश्न~ ए ~ बहार आ जाती थी ,
हर अंग में गर्मी सी होती थी ,
हर ढंग में खुमारी छा जाती थी ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरे साथ सपनों को उड़ाने की ,
एक वजह होती थी दिल चुराने की ,
तेरे साथ नशा एक होता था ,
बिन सावन ये बादल तब भिगोता था ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरे साथ इन होठों पे हँसी ,
रुकते-रुकते खिल जाती थी ,
तेरे साथ सूनी रातें भी ,
खुद~ ब ~ खुद रंगीन कहलाती थीं ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरे साथ नज़ाकत का क़त्ल हुआ ,
तेरे साथ हर पर्दा दूर हुआ ,
तेरे साथ जीने और मरने का ,
हर अधूरा सपना पूरा हुआ ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरे साथ गिर कर जो भी मिला ,
वो सँभलने का चश्म ~ ए ~ नूर हुआ ,
तेरे साथ तन्हाई भी नाज़नीन लगे ,
उसके फिर से आने की ये राह तके ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरे साथ को याद करूँ मैं जब भी ,
एक मद्धम-मद्धम सी इस मन में टीस उठे ,
बिन शब्दों के ,बिन कसमों के ,
उस टीस से बस बूँदें लहू की गिरें ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरे साथ बहने की ज़िद फिर से ,
मेरे अंदर एक तूफाँ ले आए ,
मैं देखूँ तब जिधर भी तुझको ,
हर सीरत में सूरत तेरी नज़र आए ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
मेरा प्यासा मन ,ये प्यास तन ,
एक बार तेरी फिर मुरीद करे ,
तू आ के भर दे मेरे मन का तर्पण ,
ऐसे मन से तुझे ये स्मरण करे ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तेरा साथ है एक दम निराला ,
ये जान लिया मैंने अब सनम ,
उस साथ में ही तो बसता है ,
मेरा खोया हुआ वो नया जीवन ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ……..
तू साथ निभाने आना जरूर ,
हम खड़े हैं यहीं इस दिल को लिए ,
बस रूप अपना छुपा लेना ,
और बन कर आना एक बहरुपिए ।
तेरे साथ की चाहत क्यूँ हो रही है ?
मेरी नीयत फिर से क्यूँ खो रही है ?
तेरे साथ बिताए लम्हों की कसक ,
सच कहूँ तो मेरे नैनो को भिगो रही है ।।
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