तेरे शहर की कोयल , मेरे शहर की कोयल को ……. देखो ना , कैसे बुलाती है ?
अपनी मीठी सी कूह-कूह से , हम दोनों के कानो में …… एक रस घोल जाती है ।
एक एहसास बागों का , इसने इस मन में …… ऐसा था गहराया ,
तेरे साथ शामों का , एक सपन अँखियों में ………. नदिया सा लहराया ।
तेरी कोयल की कूह-कूह , देखो ना ……. मुझे कैसे तड़पाती है ,
अपने बागों की कोयल के गीत सुन …… ये तेरी याद दिलाती है ।
तेरे शहर की छुक-छुक , गाडी की सीटी ……. देखो ना , कैसे बुलाती है ?
अपने इंजन की आवाज़ से मुझे , रातों में …… अक्सर डराती है ।
जब भी मैं अपने शहर में , तेरे शहर की …… कोई आवाज़ सुनती हूँ ,
तब मुझे तेरे ना होने की कमी , यहाँ पर ………. और तकलीफ दे जाती है ।
तेरे बगीचे का वो आम का पेड़ , गर्मियों में ……. तेरी याद दिलाता है ,
तेरे खट्टे-मीठे से स्वाद को , चखने की तड़प से …… मुझे कितना तड़पाता है ।
तेरे शहर की हर खबर , मेरे शहर में …… जब भी गूँज जाती है ,
बिन गए ही वहाँ कभी , तेरे शहर को ………. मेरे करीब लाती है ।
तेरे शहर में भी बनती दिवाली …… होते हैं होली के वो रंग ,
ये सोचकर अक्सर भीग जाते , मेरी चुनरी से ढके ………. मेरे ये अंग ।
तेरे शहर से नहीं , सच कहूँ तो …… तुझसे है मैंने दिल लगाया ,
तभी तो तेरे शहर का , हर कतरा-कतरा ………. देखो ना , मुझे यूँ भाया ।
तेरे शहर की कोयल एक बहाना …… तेरे शहर के इंजन की सीटी भी एक बहाना ,
दरअसल तेरे शहर की खुशबू से ही ………. मैंने तुझे है पहचाना ।
मैं इतनी दूर से , तेरे हर एहसास को …… समझती हूँ यहीं ,
क्या ये सच नहीं , कि मैं मरती हूँ तुम पर ………. शायद कहीं ।
तुम अपने शहर की कोयल को , अबकी बार …… ये सन्देश देना ,
कि वो अपनी कूह -कूह से , मेरे शहर को भी ………. तुम्हारे संग कहीं रँग देना ।
तेरे शहर की कोयल , मेरे शहर की कोयल को ……. देखो ना , कैसे बुलाती है ?
अपनी मीठी सी कूह-कूह से , हम दोनों के कानो में …… एक रस घोल जाती है ॥
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