तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ?
तुझ बिन सारी बातें ………… सारी बातें क्यूँ गुम हैं ?
तुझ बिन बरसता सावन ……… तुझ बिन मचलता यौवन ,
तुझ बिन देखो ना ……… सारी साँसें क्यूँ सुन हैं ?
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ………….
मैं ढीली पड़ी धीरे-धीरे ……… तेरी राहों को तकते सवेरे ,
तेरी राहों को तकते अँधेरे ……… मैं चुप सी हो गई अब अकेले ।
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ………….
मेरे सपनों में अब तेरा आना ……… थम सा गया वो फ़साना ,
मेरे सपनों में आते अब वो चहरे ……… जो रातों को डराते अकेले ।
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ………….
मेरे होठों की हँसी गुम सी हो गई ……… मेरे चेहरे की रँगत भी खो गई ,
मेरा गिर के संभलना , तेरी बाहों में फिर तड़पना ……… सब खो गया ओ लुटेरे ।
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ………….
तुझे याद करके ओ दीवाने ……… मैं पाना चाहूँ वो तराने ,
मगर उनमे भी लग गया ग्रहण कोई ……… तेरे बिन आते नहीं वो भी अकेले ।
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ………….
मैं लिखना चाहूँ तुझे जब ……… कि तुझे याद करती हूँ बहुत अब ,
ये कलम रुक सी जाए , ये मन फिर घबराए ……… सोच कर तेरे पाँवों में पड़े वो पहरे ।
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ………….
मुझे चलना आया जो संग तेरे ……… मुझे रुकना भी आया अब बिन तेरे ,
मैं वहीँ पे खड़ी ,राहें तकती तेरी ……… ये सोच कि तू करेगा दूर , मेरे अँधेरे ।
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं ………….
इन गर्म हवाओं में ठंडी रातों का अाना ……… लगता है बहुत अटपटा सा सुनाना ,
मगर तू ही जाने या मैं ही जानू ……… कि क्यूँ हैं अपनी ये ठंडी रातों के घेरे ?
तुझ बिन ठंडी रातें ………… ठंडी रातें सी क्यूँ हैं …
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