
Hindi Love Poem – Tumne Bulaaya Hi Nahin Mujhe
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तुमने बुलाया ही नहीं मुझे अपना दिल बहलाने को ,
मैं इस कश्मकश में चुप रह गई  ……….
कि अभी वक़्त है बदरा के घिर आने में ।
मैं कह नहीं पाती हूँ तुमसे  ………. अपने दिल में दबी जो बात ,
ये सोच कि तुम समझोगे शायद  ……… मेरे अंदर के खुद ज़ज़्बात ।
तुमने बुलाया ही नहीं मुझे अपना साथ निभाने को ,
मैं इस कश्मकश में बंध के रह गई  ……….
कि अभी वक़्त है सूरज के ढल जाने में ।
मुझे नहीं आता सनम  ………. तुम्हारी तरह इशारे करना ,
कुछ चुने हुए से शब्दों में  ……… हज़ारों अर्थों को पढ़ना ।
तुमने बुलाया ही नहीं मुझे अपना बदन सहलाने को ,
मैं इस कश्मकश में सिमट के रह गई  ……….
कि अभी वक़्त है मौसम के मिज़ाज़ बदल जाने में ।
मुझे सिखा जादू चलाना  ………. क़त्ल करना और बातें बनाना  ,
अपने अंदर की शरम को  ……… किसी और की शर्म के संग मिलाना  ।
तुमने बुलाया ही नहीं मुझे अपनी शर्म मिटाने को ,
मैं इस कश्मकश में उलझ के रह गई  ……….
कि अभी वक़्त है जवानी के ढल जाने में ।
मैंने कई बार बहाने से  ………. तुम्हे बुलाने की सोची  ,
सोचा कि कह दूँ लाओ ना ……… मेरे अंदर पहले जैसी सी  ……… फिर वो गर्मजोशी  ।
तुमने बुलाया ही नहीं मुझे अपनी गरमी दिखलाने को ,
मैं इस कश्मकश में तड़प के रह गई  ……….
कि अभी वक़्त है तेरे संग पिघल जाने में ।
मेरे मन में दबी थी जो बात  ………. वो मैंने यहाँ बयाँ कर दी  ,
ये सोच कि कभी पढोगे गर  ……… तो एक आस बुलाने की  ……… शायद वहाँ भी पनपेगी  ।
तुमने बुलाया ही नहीं मुझे अपनी रूह में बस जाने को ,
मैं इस कश्मकश में बिखर के रह गई  ……….
कि अभी वक़्त है एक-दूजे के संग मिट जाने में ।।
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