This Hindi poem highlights the pain of an Indian woman who is unable to express Her feelings in front of Her Husband due to some shyness in a sensual mating night.
कश्मकश में रात गुज़र जाती है ,
उनको कैसे कहें ………
यहाँ बरसात की खलिश अभी बाकी है ।
वो तो आए थे अपनी मर्ज़ी से दम भरने ,
उनको कैसे कहें ………
कुछ दम इधर भी अभी बाकी है ।
निगाहें तरसते हुए इंतज़ार में चमक खो दें ,
उनको कैसे कहें ………
इन निगाहों में सुकून की एक चाह अभी बाकी है ।
कश्मकश में रात सिहर जाती है ,
उनको कैसे कहें ………
यहाँ कसक का दर्द अभी बाकी है ।
होंठ रंगीनियत में सुर्ख़ियों की चाह भरें ,
उनको कैसे कहें ………
इन अधरों की बहुत प्यास अभी बाकी है ।
ज़ुल्फ़ें खुलती हैं और फिर बंद होके बंध जातीं ,
उनको कैसे कहें ………
इन गेसुओं में आधी रात अभी बाकी है ।
कश्मकश में रात गुज़र जाती है ,
उनको कैसे कहें ………
यहाँ नैनों के अधूरे सपन अभी बाकी है ।
जिस्म शोला सा दहक के चिंगारी बन जाता ,
उनको कैसे कहें ………
इस चिंगारी में एक फूँक की कसक अभी बाकी है ।
बहुत पिघल के ये जिस्म अब सिमटने लगा ,
उनको कैसे कहें ………
कुछ ना कहने की और भी सज़ा अभी बाकी है ।
कश्मकश में रात गुज़र जाती है ,
उनको कैसे कहें ………
इस दिल में रिसते घावों का दर्द अभी बाकी है ।
हाथ-पाँवों में बहते पसीने की गंध भर जाती ,
उनको कैसे कहें ………
इनमें लथपथ दो और नए हाथ-पाँवों की एक आस अभी बाकी है ।
किरण सुबह में फूट कर उजाले से भरी ,
उनको कैसे कहें ………
कि इस किरण पर मेरा अधिकार भी अभी बाकी है ।
कश्मकश में रात गुज़र जाती है ,
उनको कैसे कहें ………
कि एक मोहताज़ ख्वाइश फिर कल के इंतज़ार में अभी बाकी है ।
ख्वाइश उनकी अब मेरी ओर खिंचने सी लगी ,
उनको कैसे कहें ………
एक दबी ख्वाइश कुछ कहने को इधर भी अभी बाकी है ।
एक हवस का दूजी ख्वाइश को फिर निगल जाना ,
उनको कैसे कहें ………
अपनी हवस की एक नुमाइश अभी बाकी है ।
कश्मकश में रात गुज़र जाती है ,
उनको कैसे कहें ………
यहाँ बरसात की खलिश अभी बाकी है ।।
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