ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना ,
बस ख्यालों की ही बातें ……… और ख्यालों का अफ़साना ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना….
छूना चाहूँ मैं तुझे पर …… छू ना सकूँ ओ दीवाने ,
खुशबू को पाने तेरी ……… ख्यालों में ही लगूँ ये दिल समझाने ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना…..
तुमने कहा कि तुम जिए …… अक्सर मेरे इंतज़ार में ,
पलकों को तुम्हारी देख कर ……… मैं ढूँढू उसमे छिपे तराने ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना…..
बादलों का शोर सुनकर …… अपने ख्यालों में तुमको लाऊँ ,
उनके बरस जाने पर भीग ……… तेरे संग गुनगुनाऊँ ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना……
धड़कनें जब भी मेरी …… तेरा नाम दिल से पुकारें ,
तेरे आने पर शोर करके ……… ये तेरे संग पल गुज़ारें ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना……
मेरे ख्यालों की भाषा …… सिर्फ तुम्हारे ख्यालों तक जाए ,
कोई और ना उसमे शामिल हो ……… जो मुझमे ऐसी अगन लगाए ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना……
जब भी मन होता मेरा उदास …… मैं तुम्हे अपने दिल से पुकारूँ ,
तुम आते जब मेरे ख्यालों में ……… तो तुम्हारी सौ-सौ नज़र उतारूँ ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना……
मैंने अक्सर हकीकत में ही …… दिलों को टूटते देखा ,
मगर ख्यालों के इश्क़ में ……… नहीं होती है कोई सीमा रेखा ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना……
हकीकत से ज्यादा अब तुमको …… मैं ख्यालों में ही दिल में लाऊँ ,
फिर उन्ही ख्यालों में डूबकर अक्सर ……… तुम्हारे मन को मैं बहलाऊँ ।
ये कैसा इश्क़ मेरा ………. ना घर है ना ठौर-ठिकाना……
लोग पागल कहते हैं अब …… कहते हैं मुझको दीवानी ,
जो ख्यालों की ही भाषा पढ़ती ……… और ख्यालों में ही बनती रानी ॥
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