आभार , उस खूबसूरत एहसास का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार , एक अनदेखे , अंजान का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
वो एहसास जिसने हर पल , प्रतिपल ,
मेरे जिस्म से टकराकर ,
बार-बार तुम्हे ,
सिर्फ याद किया ।
वो एहसास जिसने तन्हाई में ,
हौले-हौले से ,
तुम्हारे लिखे हुए शब्दों को ,
कई बार पढ़ा ।
आभार , उस खूबसूरत एहसास का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार , एक अनदेखे , अंजान का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
तुम कहाँ से आईं , क्यों आईं ,
इस पहेली को मैं अब तक सुलझा ना सका ,
तुम्हारे लिए अपने बदलते विचारों को ,
मैं खुद से ही झुठला ना सका ।
सोचा कि , जी लूँ तुम्हारी तरह ही ,
ऐसा सोचा मैंने कई बार सनम ,
खुद को बदलूँ थोड़ा-थोड़ा ,
ऐसा सोचा मैंने भी इसी जनम ।
आभार , उस खूबसूरत एहसास का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार , एक अनदेखे , अंजान का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
वो एहसास मुझे अच्छा लगा ,
मैंने व्यक्त किया उसे शब्दों में ,
तुम बाँध लोगी उन शब्दों को भी ,
ऐसा सोचा नहीं था मेरे मन ने ।
मेरे अंतर्मन की अंतर ज्वाला को ,
कोई इस तरह से चुरा ले जाएगा ,
ये सोच कर मैं बहुत अचंभित हूँ ,
कि मेरा भी हमदम अब कोई कहलाएगा ।
आभार , उस खूबसूरत एहसास का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार , एक अनदेखे , अंजान का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार , उस स्नेह का ……. मैंने नहीं दिया ,
मुझे पता है क्यूँ ?
आभार , उस कश्मकश का ,
मैं दे भी दूँ ….. पर क्यूँ दूँ ?
सब झूठ है …… जो तुमने सोचा ,
पर सब सच नहीं ……. ऐसा भी तो नहीं ,
उस खूबसूरत एहसास में ….. मैं क्यों बँधा ?
मुझे अब तक नहीं यकीं ।
आभार , उस खूबसूरत एहसास का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार , एक अनदेखे , अंजान का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
मैंने ठान लिया ……… मैं नहीं दूंगा अब ,
आभार तुम्हे …….. उस एहसास का ,
मगर फिर भी शब्दों में लिख ही दिया ,
कि वो एहसास था ……. एक आगाज़ का ।
तुम इतने अर्थ लगा बैठीं ,
मेरे उन थोड़े से शब्दों का ,
मैं ज्यादा अगर कुछ लिख देता ,
तो ना जाने क्या होता ……. उन अर्थों का ?
आभार , उस खूबसूरत एहसास का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार , एक अनदेखे , अंजान का ,
मैं कैसे दूँ …….. बताओ ना ?
आभार ……… उस स्नेह का ,
मैं नहीं दूँगा ….. मैंने कह दिया बस ,
आभार ……… उस एहसास का ,
मैं नहीं दूँगा …….. जिसपर सिर्फ मेरा हक़ ॥
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