क्या ज़ुल्म करोगे हम पर, हम तो बिखरे ख़्वाबों का आलम हैं,
दर्द को नशा समझ कर पी जाया करते हैं,
हमारी आँखों में ज़िन्दगी ढूँढ़ने वाले, क्या ये भी नहीं जानते कि ज़िंदा ही नहीं हैं हम.…
रक्त ख़ून बन गया, बस मौत एक है,
ऐ इश्क़ हमे ज़िन्दगी न दे.
एक दुवा भेजी थी कभी उस खुदा को,
उसने कहा जी ले, ये रात भी कट जायेगी,
क्या वो ये भी नहीं जानता कि ज़िंदा तो नहीं थे हम।
दर्द भी टीस बन कर चुभता है, बिखरे कांच के टुकड़ो सा ये दिल है,
इन्हे गिन कर दर्द का एहसास जानने वाले, मेरे साथ हर लम्हा जी,
कभी महसूस कर क्या ज़िन्दगी थी हमारी।
कि यू इंतज़ार में लम्हे कट गए, बरसों बीत गए,
और मौत न आई, ऐसा कह भी तो नहीं सकते हम,
ऐ लफ्ज़ क्या ये भी नहीं जानते, कि अब तो ज़िंदा ही नहीं हैं हम…..
तुम पढ़ कर भी क्या जान लोगे ,हँस दोगे इन पर कि ये कुछ कहते नहीं,
काली सिहाई भी तो धोखा दे जाती है, फ़िर ढूँढ़ने निकले तुम जाने क्या।
कभी हुस्न के बूँद बन कर बरस जाते, किसी आशिक़ का ख्वाब बन कर भी क्या पा लेते हम,
ऐ ज़िन्दगी तू कभी ज़िंदा कर दे हमे, तू खुद भी तो नहीं जानती कि.…ज़िंदा ही नहीं हैं हम।
तुम आ जाना कभी मेरे दर पे, दुवा करेंगे इंतज़ार में ,
वो पल ही क्या जो थम ना सके तुम्हारे दीदार में ,
किसी तस्वीर में ढूँढ लेना इसे, शायद मिल जाए कहीं ,
फिर भी लफ्ज़ पूछ रहे हैं क्यों, लफ्ज़ो का क्या है, ये तो ख़तम ही नहीं होते,
दिल टूट कर जुड़ जाता है , और आप सुनते रहतें हैं इन्हे ,
हमने मुस्कुरा के फ़रमाया, ऐ सुनने वाले,
तुम ये भी तो नहीं जानते … ख़ैर छोड़ो….
जान कर भी क्या कर लोगे तुम … अब तो ज़िंदा ही नहीं हैं हम।
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