Childhood is that wonderful time in life when you don’t know the meaning of tension,sorrow and insecurity. Everywhere is only happiness. All we want to live that memorable moment again.
ख्वाबों का मेला था,उमंगों का घेरा था,
बचपन थी ऐसी मानो सबकुछ मेरा था।
माँ-बाप का दुलार,दादा-दादी का पुचकार,
बचकर िनकल जाते थें करके गलतियाँ हज़ार।
मासूम़ सी सूरत,िवश्वास की मूरत,
जुब़ा से िनकले हर बात सच-सच।
पल में कट्टी,पल में दोस्ती,
लंबी दुश्मनी िकसी से न होती।
ज़रा-ज़रा सी बात पे रोना,िफर बात मनवाकर हँसना,
और दादी से रात में घण्टो परियों की कहानी सुनना।
खेल में मस्ती,पढ़ाई में झपकी,
स्कूल न जाने के,बहानें एक से एक थी।
वो एतवार का बेसब्री से इंतजार करना और देर तक सोना,
लाख़ उठाने पर भी चादर टान के सोना।
छुट्टियों में नानी घर जाने का शोर,
और एक दिन भी न पढ़ने का होश।
चाचा चौधरी की काॅमिक्स का चस्का,वीडियो गेम की धुनकी,
इन सबके आगे भूख़ प्यास भी न लगती।
आसमान में हवाई जहाज जाता देख ज़ोर से िचल्लाना और खुशी में खूब ताली बजाना।
हवाओं में दोस्तों संग पतंगे उड़ाना,िकसी और की पतंग कटते ही उसके पीछे भागना,
एक अलग ही मज़ा था दूसरों के बगीचे से अमरूद चुराकर खाना।
त्योहारों के दिन छूटकर गोलगप्पे और आईस्क्रीम खाया करते थें,
िजतने पैसे पाॅकेट में होती थी,सब खर्च कर दिया करते थें।
सर्दी-खाँसी,बुखार से ज्यादा कुछ होता नहीं था,
िगर-िगर के उठते थें पर कुछ टूटता नहीं था।
िबना दाव़त िकसी के भी घर चले जाया करते थे,
खा-पीकर वहाँ से िनकल िलया करते थें।
और आज का वक्त है जो फिक्र से है भरा है,
खुिशयों से परा है,
इतनी िजं़दगी व्यस्त हो गई है कि अपनों से मिलने का वक्त नही है।
बचपन का दौर होता ही है ऐसा,जो हमारे आज से बिल्कुल न िमलता,
बस में होता तो फिर से बचपन में लौट जाता,
और बेफिक्र होकर िजं़दगी जीता।
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