अभी बाकी है इंसानियत …. मुझमे कहीं ,
में नहीं “बेटा “….. बन सकती कभी ,
तभी तो “बेटी ” होने का …. क़र्ज़ चुका रही हूँ ,
“भाई” की जिम्मेदारी का बोझ ….खुद उठा रही हूँ ।
बाल पाक गए हैं ….तूफानों में बहकर ,
अरमान बुझ गए हैं ….सपने सँजो -सँजो कर ,
अब सच्चाई को समझ कर ….उसमे जी रही हूँ ,
माँ-बाप के स्वार्थ का ….ज़हर पी रही हूँ ।
“भाई ” को गलत कोई … आज भी न कहेगा ,
मेरे जाने को ….वासना की चाहत कहेगा ,
वो आज भी प्यारा है …..उन दोनों की आँखों का ,
दूर है तो क्या ….चिराग है खानदानों का ।
सबसे छोटे होने की …..गलती का खामियाजा ,
मेरे लिए ही न बज पाया ….अब तक कोई बाजा ,
नौकरी करके सबका ….पेट भर रही हूँ ,
“बेटी” होने का फ़र्ज़ ….अदा कर रही हूँ ।
उमर गुज़रती गयी ….ये बात सुनते-सुनते ,
कि ब्याह करेंगे तेरा भी ……हम हँसते-हँसते ,
पर आखिर में ….लाचारी और बेबसी दिखाकर ,
छोड़ गया दो आत्मायों की ज़िम्मेदारी ….मेरे क़दमों में लाकर ।
सारी प्रॉपर्टी का हकदार ….सिर्फ भाई को बनाया ,
मुझे उसकी रखवाली का ….सिर्फ चौकीदार बनाया ,
मैं चौकीदार बनकर भी …..सुरक्षा दे रही हूँ ,
एक लड़की होने की सज़ा को ……इस रूप में झेल रही हूँ।
जिस्मानी भूख की परिभाषा ….सिर्फ “भाई” को चरितार्थ ,
मेरे लिए तो ऐसा …..सोचना भी पाप ,
अपनी तृष्णायों को …..मैं कह भी न पायी ,
आँखें बंद करके ……सह गयी बेवफाई ।
कौन ऐसा होगा …….जो मुझे इस हाल में अपनाएगा ,
मेरे माँ-बाप को ….मेरे साथ लेकर जाएगा ,
जिस ज़िम्मेदारी से …..”भाई” मुँह मोड़ बैठा ,
उसी को वो अपने …..काँधे पर उठाएगा ।
इस समाज की यही तो ….एक सबसे बड़ी विडम्बना है ,
कि सिर्फ लड़के के सपनो को …..हरदम पूरा करना है ,
उन सपनों के बाद चाहे वो ….हकीकत से मुँह मोड़ ले ,
फिर भी मरते दम तक …..उसी की चाहत का दम भरना है ।
सहानुभूति के दो शब्द …….रोज़ मुझे ….लोगों से मिल जाते हैं ,
कि – “शादी क्यों नहीं करते ?”…..ऐसे सवाल पूछे जाते हैं ,
मैं बेशर्म बनकर ……हँसते हुए …. कह जाती हूँ ,
“भाई” से ज्यादा प्यारी ……”मैं” माँ-बाप को नज़र आती हूँ ।।
A Message To All Brothers-
Don’t Leave Your Parents on your Sister’s shoulder,
Be responsible towards your parents and Become Bolder!!