A Hindi Poem – BEROJGAAR Vs SWAROJGAAR
जा रही थी याद में,
सहसा एक नवयुवक को देखा
उसके मुख मंडल पर थी
चिंता की गहरी काली रेखा
पास जाकर मैंने पूछा उससे
क्या हुआ क्या बात है
कुछ रूककर उसने कहा
मेरे जीवन में बस अँधेरी रात है
मै तो नामी विश्वविद्यालय से
ऍम. ऐ. की अव्वल डिग्री लेकर आया
क्या पता था नहीं छोड़ेगा
दामन नाकामी का साया
सोचा था एकदिन सरकारी अफसर
के रूप में गूंजेगा नाम अपना
कुछ ऐसे ही पूरा होगा
मेरे मां- बाप का सपना
कंगाल हो गया हूँ सरकारी नौकरियों
का फॉर्म भरते भरते
सच पूछो तो जी भर गया है
अब तैयारी करते करते
थक जाता हूँ एम्प्लोयेमेंट ऑफिस का
चक्कर लगा लगाकर
सो जाता हूँ रात में अपने ही
आंसू पीकर और भूख खाकर
मैंने पोछे उसके आंसू, और बोली भाई मेरे
क्यों बेबस हो गए तुम बेरोजगारी का विष पीने को
जबकि कोई भी स्वरोजगार अपनाकर
कई रास्ते है जीवन जीने को
हिम्मत करके उसने पूछा
इसके लिए धन कहाँ से आएगा
सरकारी योजनाओ के तहत तुम्हे
ऋण आसानी से मिल जाएगा
नई राह जब मैंने दिखलाई
वह बहुत खुश हुआ
जाते जाते नाम आँखों से
दे दी उसने मुझको दुआ
कुछ दिनों बाद वोह एकबार
फिर मुझसे मिला
शुरू हुआ बातों बातों में
फिर वाही सिलसिला
इसबार तो कुछ ऐसे
बदले थे उसके तेवर
शूट बूट टाई और मोज़े
शरीर पर थे सोने के जेवर
मैंने उससे फिर पूछा
और बताओ क्या हाल है
मुस्कुराकर उसने उत्तर दिया
मत पूछो अब तो माल ही माल है
अब तो मै दुसरे लोगो को
अपनी कम्पनी में रोजगार देता हू
इस तरह से खुशिया देकर
उनका दुःख हर लेता हूँ
धन्यवाद है आपको
दिखलाया जो नया रास्ता
दुखो और तकलीफों से अब मेरा
नहीं है दूर दूर तक वास्ता
आपकी राय और अपनी मेहनत से
अपनाकर स्वरोजगार अपना
पूरा किया है मैंने अपनी
कामयाबी का सपना
अब तो मै ये जान गया हूँ
भाग्य नहीं कुछ होता है
इसके चक्कर में वक्त गवांकर
इंसान बाद में रोता है
अपनी बुद्धि से साहस दिख कर
राह नई अपनायेंगें
कठिन परिश्रम के बल पर हम
असफलता को दूर भगायेंगे
उसकी ऐसी बात सुनकर
मेरी भी आँखे भर आई
सच्चे दिल और नाम आँखों से
मैंने दी उसे बधाई
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