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ZINDAGI RANG BIRANGI – 1

Published by shyam sundar bulusu in category Hindi | Hindi Poetry | Poetry with tag Love | rainbow | smile | wait

ज़िन्दगी रंग बिरंगी – १

शाम-ए-वस्ल

Shaam-e-vasl-s-bulusu

Shaam-e-vasl

अपनी बेरुख़ी की मुआफ़ी मांगने,

उसकी राह पर नज़र बिछाये,

चंद मंद सांसें सीने में थामे,

थकी मांदी आँखों से निहारते,

खड़ा हूँ सीने में बेचैनी लेकर,

मगर अफ़सोस, वह न आयी

शाम-ए-वस्ल बीत गयी,

इन्तहा-ए-इंतज़ार हो गयी,

कहीं मेरी धड़कनें रुकें और वह आये !

 


समझौता (डोंट एक्सप्रेस)

train-man-s-bulusu

Samjhouta

पैसों के हिसाब किताब में रुपया छूट गया।

आटा दाल का मोल तोलते रोटी छूट गयी।

तू तू मैं मैं की अहं बहस में शादी छूट गयी।

जीवन के तथ्यों के चलते सपने छूट गए

मुद्दों से समझौता करते असूल छूट गए।

जीने के तर्कों को समझते जीवन छूट गया।

ज़िन्दगी से समझौता करते आप छूट गया।

इन ‘पहले आप’ के समझौतों में गाड़ी छूट गयी।

 


तेरी बज़्म

Teri-bazm-s-bulusu

Teri Bazm

अब वो तू कहाँ जो तेरी बज़्म सजे, और

वो बज़्म कहाँ जिस से तेरा दीवाना चला जाए?

 

अब वो शम्मा कहाँ जो महफ़िल में जले, और

वो परवाना कहाँ जो शम्मा में मिटे?

 

तेरी बेवक़्त रुखसत से सब कुछ तबाह हो गया, बस

रहगए तेरा आशिक़ दीवाना, और जलने को तरसता वो परवाना ।

 


तू आई

Tu-aayi-s-bulusu

Tu Aayi

हल्की सी पुहार पड़ी

इंद्रधनुष प्रकट हुआ

चमेली की महक उठी

एहसास हुआ तू आई।

 

दांतो में ऊँगली दबाये

होंठों पर मुस्कान छिपाये

आँखों में शरारत उठाये

मेरे क़रीब तू आई।

 

हिरन ने नज़र चुराई

कोयल पर चुप्पी छायी

हंस की चाल लड़खड़ाई

जब दबे पांव लेकर तू आई।

 

अंगूठेसे रंगोली बनाते

आँखों से इश्क़ झलकाते

इशारों में इज़हार करते

मेरी आगोश में तू आई।

 

बाँहों के झूले में मुझे झुलाने

बेरंग दुनिया को रंगीन बनाने

कड़वी ज़िन्दगी में मिठास घोलने

मुझमें विलीन होने तू आई ।

 


अलविदा

alwida-s-bulusu

Alwida

दिल को जिस का डर था वह पल-ए-हक़ीक़त आगया।

ता ज़िन्दगी जिस से भागते थे वह पल-ए-फैसला आगया।

विटामिन खाते थे, वर्ज़िश करते थे, पूजा में फूलों के हार चढाते थे।

उस पल-ए-बेरहम को दूर धकेलने क्या क्या हथखंडे नहीं करते थे।

कुछ अधूरे फ़र्ज़ निभाने हैं। कुछ दिली सपने मुकम्मल करने हैं।

कुछ प्यार-ओ-मोहब्बत बाक़ी है। कुछ लाड़-ओ-दुलार बाक़ी है।

मगर,

बेरहम वक़्त रुका कब था? ईमानदार तक़दीर झुका कब था?

मिन्नतों के बावजूद, वह पल-ए-अंजाम-ओ-हिसाब आगया।

अलविदा।

#*#

श्याम सुन्दर बुलुसु

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