1- “मुशिकील”
एक माँ का जो सहारा था , उसकी आँखो का तारा था ।
उसको यूँ जंग मे जाते देख ,जो मुशिकील उसे होती है,
उसको कौन निवारे।।
उस बच्चे का जो सपना था ,आँखों मे खुब चमकता था ।
मन मे तरंगे भरता था,उसके सपने बिखरने से जो मुशिकील
उसे होती है उसे कौन निवारे।।
अपनी मेहनत से सींचे हुऐ फसलो को खिलते देखने का उत्साह लिऐ मन मे पर जब वो फसल सड़ता है।
उस किसान के परिवार का पेट कैसे पलता है,जो मुशिकील होती है उस मुशिकील को कौन निवारे।।
जब कहीं किसी परिवार मे किसी का कोई अपना छोड़
जाता है जो र्दद होता है।
उसे हमेशा के लिऐ खुद से दूर जाते देख जो मुशिकील ,
होती है उसे कौन निवारे।।
बचपन से जिस औलाद को सिरांखो पे रखा और की ,
कोशीश सच करने का उसका हर सपना ।
बड़े होने पे जब वो बदल जाता है , माँ -बाप को आँख दिखाता है ,जो मुशिकील उसे होती है उसे कौन निवारे ।।
2- ” काश “
तु था सबका भाग्य विधाता लिख दी तुने सबकी गाथा ।
मन मे हो बहुत ही आता काश उसे कभी बदला जाता पर
तेरा लिखा कभी नही बदल पाता।।
खिंच देता तु जो लकीरें बन जाती वो जीवन की तस्वीरें ।
मन मे हो बहुत ही आता काश उसे कभी बदला जाता पर,
तेरा लिखा कभी नही बदल पाता।।
मिटा देता तु जिसके निशां वो जिंदा जाता शमशान।
मन मे हो बहुत ही आता काश उसे कभी बदला जाता ,पर
तेरा लिखा कभी नही बदल पाता।।
3- जिंदगी
जिंदगी के खो जाने से एक खुशी बढ़ जाती है ।
कि हुआ खत्म होने का सिलसिला ये आँस बढ़, जाती है ।।
अब और कुछ खोना नही तुझको यह विश्वास दिलाती है।
देती यह एक खशी जो न खोयेगी अरमानों-खुशियोँ की तरह, सपनों और अपनों की तरह बंद हुया रोना
तड़पना ,चौटे खाना गिरना संम्भलना ।
मूशिकीलों से लड़ना नही है, हादसे से डरना नही है ।
करनी नही चिंता किसी की ,बस आगे बढना यूहीं है।
र्दद न होगा,रोग न होगा ,न दूराचार, न अनाचार बस
एक मुस्कान चेहरे पर होगी ,जो लाश मे दफन होगी।
–END–