In this Hindi poem the poet is requesting her husband not to stop her from writing as writing is her passion and motive of her life.
“राणा” कहे ……तू छोड़ दे लिखना ,
हासिल ना होगा तुझे कुछ …..इस ज़माने से ।
वो क्या जाने ……मुझे क्या सुकून मिले ,
फिर क्यूँ हासिल करूँ ……मैं कुछ ज़माने से ?
एक यही तो है आग बाकी ……..जो सुलगती है अब सीने में ,
गर इसे भी बुझा दिया उसने …..तो बाकी क्या बचेगा फिर जीने में ?
ये जरूरी नहीं कि हर शौक की …..कीमत कोई आकर आँके ,
ये जरूरी नहीं कि मेरे लेखों को ……ज़माना कभी पढ़कर बाँचे ।
बस एक जूनून सा लिए मैं लिखने लगी …..यूँही किसी बेताबी में ,
हाँ एक जूनून सा लिए मैं लिखने लगी …….यूँही किसी खुमारी में ।
मत रोक मुझे ए राणा तू …….इस लिखने की परछाई से ,
मत रोक मुझे ए राणा तू …….मेरे अन्दर बसी गहराई से ।
कोई शौक करे मयखाने का …..कोई जुए में सब कुछ गँवा बैठा ,
कोई भोगे औरत का मधुरस ……कोई अपने जूनून की खातिर सब कुछ लुटा बैठा ।
मैं तो बस शौक रखूँ कुछ लिखने का ……उसमे भी “राणा” तू रोक रहा ,
मत कर बेबस मुझे इतना तू …..कि मेरा वजूद भी मुझसे तू छीन रहा ।
घिरने दे मुझे इन शब्दों के भरम में ……ये एक दिन मेरी आवाज़ बनेगी ,
लिखने दे मुझे इस झूठी कलम से ……इन्ही शब्दों की मेरी एक दिन किताब बनेगी ।
मैं यही सीख दूँगी सभी को जहान में ……कि जब भी कभी तुम हो जाओ उदास ,
थाम “कलम” को लिख देना तब अपने …..जीवन का बहता कोई करुणा भरा राग ।
“राणा’ मैं तेरे संग बँधी ……सात फेरे लिए अग्नि के चारों ओर ,
पर उन सात फेरों में ये नहीं था लिखा ……कि मैं तेरी मर्ज़ी से दूँ सब छोड़ ।
मत रोक मुझे लिखने से तू …..कर मेरी भी इस बात का यकीन ,
कि लिखने वाले ही होते हैं सदा …..जो वफ़ा लिए होते हैं दिल में कहीं ॥
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