“दूसरी मॉं”
हम लोग थे इतने छोटे बच्चे
कि बापू से पाला नहीं गया|
बापू ने की कोशिश बहुत
लेकिन हमलोग को संभाल नही पाया|
फिर कुछ अपने , तो कुछ पराये
मिलकर बापू का शादी कराये
बापू छोड अपनी खुशी
हमलोग के खातिर हॉं -बोले
और बापू ने खुश होकर बोला-
देखो दूसरी मॉं लाया|
हम बच्चों को समझ नहीं आया
प्यार से हमने उन्हें मॉं बुलाया|
उसने भी हमें बेटा बुलाया,
प्यार से सिर पर हाथ फिराया,
सच- अपनी मॉं की याद नहीं आया,
दौडकर हमने बापू को बताया|
बापू ने खुश होकर बोला-
देखो दूसरी मॉं लाया|
हाथों की मेंहदी छुटी भी नही
की वो तिरछी ऑंखों से,
हम दोनों को चेताई|
दबी जुबान से बोल गई
घर-तो-घर , पास-पडोस में भी
जहर घोल गई|
बाप-बेटा में कलह कराई
ना जाने कितनी रातें
बापू को भी भूखे पेट सुलाई,
फिर भी बापू न रोया
और खुश होकर बोला-
देखो दूसरी मॉं लाया|
इस परिवार की धडकन है हम
सौतेला होने का भी अडचन है हम|
अपनी मॉं जैसी प्यार नहीं करती
खुद धूप में रहकर, हमें छॉंव नहीं देती,
फिर भी हम उन्हें मॉं बुलाते|
फिर भी खुश होकर बोला-
देखो दूसरी मॉं लाया|
बापू अब करते भी क्या
गले में तो घंटी बॉंध लिया
बापू ने की कोशिश बहुत,
लेकिन ताल-मेल बना नहीं पाया|
जब-जब आया हमें रोना,
तो बापू ने गले लगाया,
लेकिन बापू अंदर-ही-अंदर रोया
ये सिर्फ और सिर्फ बापू ही देखा|
फिर भी खुश होकर बोला-
देखो दूसरी मॉं लाया|
अंतत: बापू मन-ही-मन बहुत पछताया
जोश में बच्चों का प्यार
और अपनी आजादी भी खोया|
फिर भी बापू न रोया
और हमलोग को यही समझाया
मॉ तो मॉ होती है मेरे बेटे
और बापू ने खुश होकर बोला-
देखो दूसरी मॉं लाया|
–END–
** ALOK KUMAR(TISPRASS) **