This Hindi poem highlights a Writer’s wish in which He wishes a fountain pen and a bottle of wine for His life as He wants to get drowned himself for the same and eager to search the new thoughts that will emerge from it.
बस एक कलम ,एक गिलास ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मेरा जाम बनेगा जब छलकता प्याला ………. मेरे लेखों से निकलेगी तब ज्वाला ,
मेरे जाम में होगी जब ठंडक ……… मेरे लेखों में बढ़ेगी तब प्रेम की कीमत ।
बस एक कलम ,एक गिलास ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
पीना, लिखना और जीना ………. सब आते-जाते तराने हैं ,
एक लेखक को लोग तब समझें ……… जब बिकते उसके अफ़साने हैं ।
बस एक कलम ,एक गिलास ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मुझे मदिरा जब-जब स्याही लगे ………. तब-तब अंदर एक गीत जगे ,
मुझे मदिरा जब-जब प्यास लगे……… तब-तब लिखने की आस बढ़े ।
बस एक कलम ,एक गिलास ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मेरे प्याले में जब-जब होगी गर्मी ………. तब-तब छलकेगी वासनाओं की बेशर्मी ,
मेरा प्याला जब होगा ठंडा ……… तब हुस्न भी यहाँ पड़ा होगा मंदा ।
बस एक कलम ,एक गिलास ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
लेखक भी तो नशे का ही आदी है ………. बस उसके नशे की होती है एक अलग परिभाषा ,
कभी वो इस नशे में खुद डूबता है ……… कभी सारे संसार को रख देता है प्यासा ।
बस एक कलम ,एक गिलास ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मैं लेखक बड़ा ही मतवाला ………. मुझे जाम की हरदम एक आस रहे ,
बिन जाम के शब्द ये रुक से जाते ……… पर जाम पीकर ये फिर आबाद चलें ॥
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