एक पल-पल गिराता है मुझे ………. एक पल-पल है मुझे उठाता ,
मैं जब भी डूबने लगती हूँ ……… तभी वो दूजा और याद आता ।
मैं जब भी छोड़ कर जाने लगती हूँ ……… उस दूसरे की यादों को ,
तो पहला खुद ही धकेल देता मुझे ………. फिर उस की ही बाहों में ।
मैं हर बार खुद को बनाकर गुनाहगार ……… उस दूसरे से मुँह मोड़ लेती ,
वो फिर भी कुछ कहता नहीं ……… समझ उसे मेरे दिल की हँसी ।
गिराने वाले को ऊँचा बना ………. वो मुझको हर बार समझाता ,
कि गिरने में भी देखो ना ……… कितना मज़ा अब और है आता ।
मैं कई बार सोचा करती हूँ ………कि क्या मिलता है उसे मुझे यूँ गिराने में ,
मैं तो पहले से ही गिरी हूँ ………. उसके रहम~ ओ ~ करम के शामियाने में ।
मैं गिरके भी नहीं थामूँगी कभी ……… हाथ उस दीवाने का ,
ये जानता है वो भी ……… तब भी साथ देता है मेरे ग़मों के तरानों का ।
मैं अक्सर भागने को इस जहान से ………. जब भी अर्ज़ी अपनी उसके समक्ष पेश करूँ ,
वो हर बार उस अर्ज़ी में , मेरी खुदगर्ज़ी का चेहरा दिखा ……… मेरे भरम का क़त्ल करे ।
वो गिरा-गिरा के ले जाएगा मुझे एक दिन ……… यूँ मौत के कगार पर ,
कि ज़िंदा लाश बना के छोड़ देगा तब ……… जब सोच भी ना रहेगी बाकी , लिखने को इस सँसार में ।
उसे नफरत है मेरी सोच से ,मेरे ईमान से ……… मेरे वजूद से ए दोस्त ,
वो फिर भी मुझे हर बार कहता ……… कि हवा का रुख मुड़ा है उसकी ही ओर ।
मैं सोचती हूँ अब कि बात मानूँ किसकी ………. उसकी जो गिराके , हँसे मुझ पर ,
या उसकी जो सहारा दे , और अक्सर कहे ……… कि जा जी ले ये हसीं पल अब ।
आज सोचा करती हूँ , कि कितना अच्छा होता जो ……… ये पहला ना गिराता मुझे यूँ पल-पल ,
तो साथ जीवन भर उसका निभाती ……… पूरी वफाओं से उम्र भर ।
फिर सोचा करती हूँ कि अच्छा ही है ……… जो इसने गिराया मुझे यूँ पल-पल ,
कम से कम साथ तो दूजे का मिला ……… कुछ हसीं पलों के लिए ही , बहने को कल-कल ।
इसलिए गर चाहते हो वफ़ाएँ ………. अपने जीवन साथी से सम्पूर्ण ,
तो मत गिरायो उसे यूँ पल-पल ……… कि वो हाथ थामे , किसी उठाने वाले का फिर कल ।।
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