(1) एक माँ बार बार अपने आॅचल को देखती है,
पता नहीं वो क्या सोचती है।
हम एकटक उसे निहारते रहे,
और चुप खड़े अंदाजा लगाते रहे।
कि किस लिए वो इस तरह अपने आँचल को निहारती हैं,
और निहारकर बार बार वो क्या सोचती है।
जब नहीं रूका गया तब हम उनके पास गये,
पूछा कि माॅ आप आॅचल को देखकर क्या सोचती हो।
वह बिना पलक झपकाये हमें देखती रही,
आखों में आंसू सूखे से होंठ बैठी सी आवाज के साथ बोलती है।
कि क्या माॅ बनना एक गुनाह है,
क्या माँ के नसीब में सिर्फ रोना है।
जब वो छोटा था तब मैंने उसे पाला,
और आज उसके पास नहीं मेरे लिए निवाला।
उसके हर सुख दुःख को गले से लगाया ,
उसके बदले अब मेरे नसीब में काॅटे है ।
सर ढकने को छत नहीं ना मुँह में निवाले है ,
दर दर की ठोकरे है मेरे नसीब में ।
क्या मैंने यही बोया था ,
जो फल आज मैंने काँटे है ।
(2) कुछ किस्से सुने, कुछ अनसुने रह गए ।
कुछ बातें कही, कुछ अनकही रह गयी ।
कुछ सपने पूरे हुए, कुछ अधरे रह गए ।
कभी खुशी इतनी मिली हम पागल से देखते रह गए ,
पलक झपकते ही इतना गम मिला ,
कि हम सिमट के रह गए ।
जिंदगी ना जाने कितनी बार तमाशा बनी,
और हम देखते रह गए।
( 3) तू कहता है माँ तू कुछ जानती नहीं
इस दुनिया को तू पहचानती नहीं
दुनिया का पता नहीं शायद मैं बूढ़ी हो चली हूँ
पर तेरी खुशी और गम जान लेती हूँ
बेटा मैं माँ हूँ बिन बोले तेरी आहट पहचान लेती हूँ
माँ कितनी भी बूढ़ी हो जाये
भले ही तेरी मदद के लिए हाथ ना बढ़ा पाये
पर भगवान से तेरी दुआ और सलामती के लिए
हाथ जोड़ लेती हूँ
मैं माँ हूँ पगले तेरे कदमों की आहट से तेरे मन के मन के भाव जान लेती हूँ।
………….. END………….