This Hindi poem is about the election scene in India where leaders forget all the codes of conduct in a bid to win the elections. It also satirically exposes the system of party driven democracy where people driven democracy goes to the backseat.
चुनाव है, चुनाव है
रैलियां है, रेले हैं,
सभाओं के मेले हैं।
नेताओं की दहाड़ है ,
माइक पर चिघाड़ है।
शामियाने है , कनाते हैं ,
झूठ और फरेब की बातें है।
नेताजी जनता को सब्जबाग दिखाते हैं ,
चलो फिर से जनता को मनाते हैं।
इसीलिए सारा कावं-कावं हैं,
चुनाव है चुनाव है ।
नेताजी हाथ जोड़े हैं,
मुहं खोले हैं, दांत निपोड़े हैं,
सिर गर्दन से झुकाये है,
वोट माँगने जो आये हैं।
सभी स्त्रियों को बहन जी बताते हैं ,
सभी पुरुषों को जीजाजी बनाते है।
पगड़ी निकालते हैं ,
लोगों के पैरो पर डालते हैं।
बड़े विनम्र और शर्मीले हैं,
शील स्वभाव से पूरे गीले हैं।
पूरा शाष्टांग कर बोल रहे,
जनता जी कहाँ आपका पावँ है,
भई, चुनाव है, चुनावहै।
नेताजी नेता पर आरोप लगाते हैं,
विफलता का दोष दूसरे पर डालते हैं,
आपस की भाषा में देते हिदायतें है,
एक दूसरे से करते गंदी- गंदी बातेंहैं।
जुबान पर नहीं कोई मर्यादा है ,
कोई कम तो कोई ज्यादा है।
चुनावी जंगल में बने रंगेसियार हैं,
चुनाव के मौसम की अलमस्त बयार है।
नफ़रत की खेती है ,
सियासी रेगिस्तां की रेती है।
शतरंज की बिछी बिसात है ,
शह है और मात है।
इसीलिए सभी चल रहे
अपने – अपने दावं है।
चुनाव है, चुनाव है।
नेताजी आये हैं ,
फल फूल लाये हैं,
टूटी खाट पर बैठ जाते है,
कभी जमीन पर लोट जाते हैं ,
यहाँ वहाँ जहान की धूल खाते हैं,
जनता का असली सेवक बताते हैं।
पांच वर्ष बाद हुए दर्शन है,
कितना बड़ा महापरिवर्तन है।
फिर वोट ले जायेंगे
मतदान बाद ठेंगा दिखाएंगे .
नेताजी रामू की मड़ैया में टिके हैं,
कहते हैं मेरा यही घर हम यहीं के हैं।
आज रामू का बढ़ गया भाव है ,
चुनाव है चुनाव है।
नेताजी की चली गयी गाड़ी,
जनता छूट गयी पीछे बेचारी .
प्रचार का अंत , ठंढी होती बयार है,
पीछे उड़ रहा गुबार ही ग़ुबार है।
अब दर्शन होंगे पांच वर्ष बाद ,
बाई बाई, गुड बाई, धन्यवाद – धन्यवाद।
इसी तरह हमें सहयोग देते रहे,
आप दिन काटे, हम मलाई काटते रहें।
दलतंत्र चढ़ गया प्रजातंत्र की नाव है,
चुनाव ही चुनाव है।
अंततः:
प्रजातंत्र का महापर्व है ,
इस पर हमें गर्व है।
संसद की मजबूत प्राचीर है ,
सांसद भी धीरे – धीरे बनते अमीर हैं।
बस , सिर्फ गरीब होता गाँव है,
चुनाव है, चुनाव है ,
चुनाव है , चुनाव है।
— ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र, 3A, सुन्दर गार्डन, संजय पथ, डिमना रोग, मानगो, जमशेदपुर।
मेतल्लुर्गी*(धातुकी) में इंजीनियरिंग , पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मार्केटिंग मैनेजमेंट । टाटा स्टील में 39 साल तक कार्यरत । पत्र पत्रिकाओं में टेक्निकल और साहित्यिक रचनाओं का प्रकाशन । सम्प्रति जनवरी से ‘रूबरू दुनिया ‘ भोपाल से प्रकाशित पत्रिका से जुड़े है । जनवरी 2014 से सेवानिवृति के बाद साहित्यिक लेखन कार्य में निरंतर संलग्न ।
E-mail: brajendra.nath.mishra@gmail.com,