This Hindi poem highlights the major issue of “Extra Marital Affair” ,the poetess is requesting her Lover not to indulge a physical relationship that he demanded as She had already swear the marriage proposition with Her husband.
बेपर्दा मत करो हमें ……..परदे में ही रहने दो ,
ये पर्दा भी जो हट गया …..फिर किस परदे में देंगे हम खुद को डुबो ?
कुछ तो बाकी रह जाने दो ……अपने और मेरे दरमियाँ यारा ,
कभी मुलाक़ात जो होगी कहीं ……तो देंगे तब तुम्हे तोहफा ये प्यारा ।
हर बार ये जरूरी नहीं ……कि इश्क का अंत ऐसा ही हो ,
कुछ लोगों के इश्क ….अधूरे फ़साने से भी तरंगित हों ।
बेपर्दा मत करो हमें ………परदे में ही रहने दो ,
ये पर्दा जो गर हट गया ……तो हर परदे में लिपट कर देंगे हम रो ॥
कहने दो दुनिया से मुझे भी ……कि मेरा इश्क बहुत ही पाक था ,
इशारा तो दोनों तरफ था ……मगर फिर भी उठा ना कभी वो पर्दा ……जो बहुत ख़ास था ।
हर बेकरारी में …….करार पाने का ये एक जूनून है ,
जिसमे महबूबा लगती है जैसे ……..जन्नत की कोई हूर है ।
मगर उस हूर की ……..उस कश्ती को ना तुम बर्बाद करो ,
जिसमे मुसाफिर पहले से ही हों ……..और खेमे वाले का सिर्फ साथ हो ।
बेपर्दा मत करो हमें ……परदे में ही रहने दो ,
इस परदे में ही जलती है देखो …..कितने अफ्सानो की लौ ।
हर रोज़ मैं डरती हूँ ये सोच ……कि रुसवा जो तुम मुझे कर बैठे ,
तो हर रुसवाई की कीमत अदा करते-करते …..ये दिल क़त्ल होगा यहीं ज़मीं पर ।
तब ना रहेगी इस परदे की खुशबू …..और ना ही चलेगी तेरी हुकूमत ,
इसलिए परदे के बीच जो होता है ….उसे वैसे ही रहने दो ।
कभी कनखियों से मुझे निहार ……सपनो में ही सपनो को बहने दो ,
बर्बादी से बेहतर है कि ……. आबादी को गले लगा …..हर परदे में ये कहने दो ।
कि बेपर्दा मत करो हमें …….परदे में ही रहने दो ,
इस परदे के लिए ही तो खाई हैं हमने …….सात फेरों के वचनों की सौं ।
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