Funny Hindi Poem: जब कुछ न बन सका..बन गया बाबा!(हास्य-व्यंग्य)
मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ यार!
एक बार जंगल चला गया मैं ….
सोचा मैंने मन ही मन में…
मनुष्य भी है अन्य प्राणियों की तरह ही….
पर, कुछ ज्यादा समझदार…
फिर भी आखिर है तो एक प्राणी….
तो क्यों नहीं रह सकता जा कर किसी जंगल में….
जैसे रहते है जंगल में….
शेर, हाथी, बन्दर और भालू….
तो मनुष्य भी रह सकता है….
चाहे कितना भी हो चालू….
मैंने सोच ही लिया…
जंगल में रह कर मेरा ‘एडवेंचर’ का शौक…
पूरा हो सकता है….
अब ऐसा कोई नहीं है…
जो मेरा रास्ता रोक सकता है!
वैसे भी तंग आ चुका था मैं….
समाज और दुनियादारी से..
नौकरी ना मिलने हालत में,
पैदा हुई विटामिन ‘एम’ की कमी से…
पढ़ाई पर अच्छा खर्चा किया था….
मेरे परम पूज्य पिताश्री ने ही तो …..
एक पहुंचे हुए नेता की चिठ्ठी के जोर पर …
दाखिला दिलवाया था महंगे इंग्लिश मीडियम के स्कूल में…
डोनेशन के मोटे दम पर इंजीनियर भी बन गया मैं…
..लेकिन नौकरी न मिली… न मिलनी थी!
पिताश्री स्वर्ग सिधार गए थे तब तक….
पिताजी की ब्लैक मनी पर ही….
तागड़-धिन्ना करता आया था अब तक….
लेकिन वह जल्दी ही हो गई खतम….
और फिर हाय!…मैं मनाने लगा मातम्!
ले लिया कर्जा,कई दोस्तों से….
कुछ दिन कट गए आराम से….
अब जब वे कर्जा वापस मांगने आए….
टिक कर बैठा न गया अपने राम से….
तो मैं चला आया यहाँ जंगल…
यारो!…छिपने ही के इरादे से!
अपने लिए ढूंढ लिया एक बढ़िया सा जंगल…
सोचा इस घटिया जीवन का मंगल…या अमंगल…
अब यही रह कर जो होना हो…हो ले….
ऐ!…भोंदू!…कुछ दिन तो आराम से गुजार लें….
यही मेरी छोटी सी राम कहानी थी….
जो सुन सके उसे ही सुनानी थी!
यहाँ मेरे पास बन्दूक थी….
अपनी हिफाजत के लिए….
क्यों कि मैं प्राणियों में श्रेष्ठ प्राणी था…
मेरे पास एक अदना सा कैमरा भी था…..
फोटोएँ उतारने के लिए…
एक सस्तासा मोबाइल भी था….
अपने शहर निवासी निठ्ठलों से बतियाने के लिए….
अब मैं जंगल के बीचो-बीच खडा था …
कोई भी जंगली जानवर दिखा नहीं था अब तक…
लगा सब भाग खड़े हुए….
मेरे जैसे होशियार जानवर के आने की खबर….
शायद पहुँच गई उन सब बेचारों के कानों तक!
….कि कहीं से आवाज आई..
हंस रहा हो जैसे…कोई लक्कडबघ्घा…
शेर भी लगा दहाड़ने अचानक…
वह भी जरुर होगा…यहीं-कहीं..
मेरे हाथ से फिसल गई बन्दूक…
पतलून की दशा तो बहुत ही बुरी हो गई….
पाँव अकड गए अपनी जगह पर….
जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा उस घड़ी….
होगा कोई लेनदार…वरना किसको क्या पडी!
…पर मेरी जान तो आफत में आन पडी….
ईश्वर, अल्लाह और गौड़…
तीनों को एक साथ पुकार रहा था मैं ….
कोई भी आ कर बचा ले मुझे तो….
सवा रुपये का परसाद जरुर चढाउंगा मैं ….
मोबाइल की बजती घंटी बंद हो गई…
और मेरी बंद आँखे अचानक खुल गई!
…कि उस घड़ी एक चमत्कार हुआ….
एक साधु जटाधारी मेरे सामने आया….
उसने मेरा हाथ थामा …
और अपना टेप रिकार्डर चलाया….
लक्कडबघ्घे और शेर की आवाज..
उसमें से ही….आ रही थी…
मुझ जैसे बेवकूफ को, बेवकूफ बनाने की….
उसने बहुत अच्छी साजिश रचाई थी…
फिर से आवाजें गूंजने लग गई…
साधु ने मुझ से कहा….
“ इस आवाज से तो…
भाग जाते है जंगली जानवर और…
…असली शेर भी…
मेरे साथ मिल कर साधु बन जा..
अरे आजा दोस्त, क्या याद करेगा तू भी!
चल…हम दोनों मिल कर करते है….
कोई नया धंदा-पानी !…
मैं भी हूँ तेरे ही जैसा यार!…
अब उब गया हूँ..जंगल में रहते, रहते..
हूँ पढ़ा-लिखा, मगर बेरोजगार!
यहाँ जंगल में ऐ दोस्त!
पड़ा रहना है बेकार….
चल!… शहर चलते है….
साधु-संत बन कर प्रवचन देने की …
एक कंपनी खोल लेते है….
फिफ्टी-फिफ्टी पार्टनरशिप कैसी रहेगी…?
गुरु-चेले की जोड़ी कैसी रहेगी?”
मुझे अच्छा लगा प्रस्ताव….
मैं तुरंत मान गया…..
और जंगल से बाहर निकलकर….
मैं भी साधु के स्वांग में आ गया…
अब वो मोटासा मेरा जंगल वाला दोस्त….
वही जटाधारी साधु…गुरु है मेरा ….
मेरा रिहाइशी बंगला अब…
भव्य आश्रम है हमारा …..
खूब देते है हम प्रवचन…
खूब बिकती है हमारे प्रवचनों की किताबें…
…अब होती है नोटों की तेज बरसात….
…हम दोनों बहुत खुश है…
बाबा-गिरी का धंदा…
खूब चल पढ़ा है हमारा..
वो है मेरा गुरु और मैं उसका चेला…
बाबा बन बैठे है हम दोनों…
थामें राम नाम का प्याला….
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