This Hindi poem describes the Love scene of two Lovers in which they both are trying to find out the heart beat of each others but in the meanwhile the Lover persuade Her beloved to go back as She was getting Herself undressed in that particular situation.
धड़कनों को परखने का …..वो खेल था बहुत ही निराला ,
कभी तुमने अपने ,कभी हमने अपने …..ज़ज्बातों को ढूँढ निकाला ।
तुम बताते रहे ,ये सिखाते रहे …..कि अपने हाथों को थोड़ा दबा दीजिए ,
जब धड़के ये दिल ,जब थमे साँस तब …अपनी धड़कन को महसूस कर सुना दीजिए ।
मेरा दिल बहुत नाज़ुक सा है …..ये कहना भी चाहे तो कहता नहीं ,
धड़कनों के बहाने ये धड़कता तो है …..फिर भी साँसों को थमने को कहता नहीं ।
आज कह दो न हमसे कि सौदा करें ……चलो धड़कने एक-दूजे की हम टटोल लें ,
हम पा ना सके जिस धड़कन को खुद ही ….उस धड़कन को खोज उस पर कब्ज़ा करें ।
हम धड़कनों को पकड़ उसकी तारीफ़ में …..जब कहने लगे तुमसे अपने ख्यालों में कुछ ,
तब हौले से तुमने रोक करके कहा ……मत बोलो अब ….होने दो जो होता है सपना अब कोई सच ।
तुम धड़कन को अपनी सुनाओ ना अब ….क्योंकि गिनती गिननी हमें अब आती नहीं ,
तुम्हारे सीने की गर्म साँसों का उठता धुआँ ……तेरे जलवों के आगे अब देता दिखाई नहीं ।
तुम पाना जो चाहते हो चाहत को मेरी …..तो अपनी धड़कन को थोड़ा खुला सा करो ,
इस बंद और अनजान सी चाहत को …..मेरी नज़रों के आगे समर्पित करो ।
हम लुटने लगे तेरी मीठी बातों में देखो …..धड़कनों को कहा पूरे ज़ोरों से धड़को ,
वो सुनेगा नहीं ,देखेगा अब इनको …..जितना हो सको रुसवा उतना होकर के देखो ।
दुपट्टा काँधों से अब सरकने लगा था …..धीरे-धीरे मदहोशी के आलम में ,
वो पढ़े ,वो सुने , इसलिए ही तो …….सब लुटने लगा था इस नए सावन में ।
धड़कने सुननी नहीं थी ,देखनी नहीं थी …..बस मदहोशी का मज़ा लेना था उसको ,
अपनी बेकरारी को करार देने का …..अंतिम निर्णय अब देना था मुझको ।
बड़े ही प्यार से मुझे सम्भाला उसने ……कहा जाओ संभालो बस ……इन धड़कनों को अब तुम ,
ये हैं इतनी नाज़ुक ,इतनी भोली ,कि पर्खा जो मैंने इन्हें …….तो हो जाऊँगा मैं भी इनमे ही कहीं गुम ॥
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